वक़्त ने ढाये कहर क्या करते
वक़्त ने ढाये कहर क्या करते
तोड़ ही डाली कमर क्या करते
बन गये बुत गमों को सह सहकर
अब ये तूफान असर क्या करते
शौक पाले हैं अमीरी के जब
चार पैसों से गुज़र क्या करते
है वफ़ा से भी शिकायत इतनी
बेवफा होते अगर क्या करते
गिर गये आँधियों में ये यूँ ही
होते कमजोर शज़र क्या करते
डरते हैं ऊंची इमारत से हम
पर लिया उनमें ही घर क्या करते
जब न मंज़िल न ठिकाना कोई
‘अर्चना’ करके सफर क्या करते
07,-06-2018
डॉ अर्चना गुप्ता