वक़्त ऐसा ग़ज़ब मदारी है
अपनी मर्ज़ी चला के छोड़ेगा
कोई करतब दिखा के छोड़ेगा
मूंग सीने पे फिर दलेगा वो
मेरे दिल को दुखा के छोड़ेगा
बैठ जाता है जा के ग़ैरों में
यूँ ही मुझको जला के छोड़ेगा
हर अदा उसकी क़ातिलाना है
दिल को बेशक़ चुरा के छोड़ेगा
तीर नज़रों के तेज हैं उसके
दिल को ज़ख़्मी बना के छोड़ेगा
ये अंधेरा घना सा राहों में
आज मुझको डरा के छोड़ेगा
ये सफ़र भी तवील है देखो
मेरे छक्के छुड़ा के छोड़ेगा
वक़्त ऐसा ग़ज़ब मदारी है
खेल अपना दिखा के छोड़ेगा
अपनी धुन का बहुत ही पक्का है
अब वो गौहर भी ला के छोड़ेगा
मुझको ‘आनन्द’ पर भरोसा है
अपना वादा निभा के छोड़ेगा
#स्वरचित
डॉ आनन्द किशोर
दिल्ली