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16 Nov 2018 · 1 min read

वक़्त ऐसा ग़ज़ब मदारी है

अपनी मर्ज़ी चला के छोड़ेगा
कोई करतब दिखा के छोड़ेगा

मूंग सीने पे फिर दलेगा वो
मेरे दिल को दुखा के छोड़ेगा

बैठ जाता है जा के ग़ैरों में
यूँ ही मुझको जला के छोड़ेगा

हर अदा उसकी क़ातिलाना है
दिल को बेशक़ चुरा के छोड़ेगा

तीर नज़रों के तेज हैं उसके
दिल को ज़ख़्मी बना के छोड़ेगा

ये अंधेरा घना सा राहों में
आज मुझको डरा के छोड़ेगा

ये सफ़र भी तवील है देखो
मेरे छक्के छुड़ा के छोड़ेगा

वक़्त ऐसा ग़ज़ब मदारी है
खेल अपना दिखा के छोड़ेगा

अपनी धुन का बहुत ही पक्का है
अब वो गौहर भी ला के छोड़ेगा

मुझको ‘आनन्द’ पर भरोसा है
अपना वादा निभा के छोड़ेगा

#स्वरचित
डॉ आनन्द किशोर
दिल्ली

3 Likes · 1 Comment · 279 Views
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