व्योम बरसात ले आया
धरा की देख बैचेनी, पवन सौगात ले लाया
तपी थी धूप में धरती, व्योम बरसात ले आया।
घटा घनघोर है छाई, लगे पागल हुआ बादल-
सजाकर बूँद बारिश की, चमन बारात ले आया।।
तड़पती धूप में धरती ,परेशां घूमता बादल,
हुई बैचेन वसुधा जब, हमेशा झूमता बादल।
पवन को छेड़ के हरदम, घटा घनघोर कर देता-
गगन से बूँद बरसा कर, धरा को चूमता बादल।।
धरा से हो मिलन उसका, सदा हालात ले आया।
धरा की…….
फ़ुहारों ने जमीं चूमी,हुई पुलकित धरा सारी,
बहारों को ख़िलाकर के, हुई पुष्पित धरा सारी।
खिले हैं बाग वन-उपवन, लगे ज्यूँ गात में उबटन-
नयन मदिरा लगे दरिया, लगे कल्पित धरा सारी।।
उमड़ती देख नदिया ये, पहाड़ों से उतर कर के,
जमीं को नापती सारी, चली कैसे सँवर कर के।
उठा है ज्वार सागर में, उसे खुद में समाने को-
उसे आगोश में लेकर, करेगा प्यार जी भर के।
बढ़ा जो खेत में पानी, खिली सूरत किसानों की,
तभी तो झूम के नाची, बुझी हसरत किसानों की।
लिया था कर्ज़ खेतों पे, बड़ा ये बोझ था दिल पे-
हुई बरसात तो देखो, जगी चाहत किसानों की।।
फ़टी वसुधा पड़ी सूखी ,नयन जज़्बात ले आया,
गिराकर बूँद धरती पर, जलद सौगात ले आया।
मिलन अम्बर धरा का ये, नव चाह ले आया ।
‘दीप’ सृजन का बीज बोने का, व्योम बरसात ले आया
-जारी
-कुल’दीप’ मिश्रा