व्यापार
आधार छंद -विधाता
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समय के साथ जो बदले,वही व्यापार होता है।
गिरे को ही उठना त़ो,सतत व्यवहार होता है।
मुनाफे के लिए बातें,बनाना खूब आता है,
दिखावा हर कदम करता,हृदय अंगार होता है।
जगत में है नहीं कोई, छला जिसको नहीं उसने,
लबों पर झूठ का हरदम,लगा भंडार होता है।
करे सिद्धांत की बातें ,मगर उससे डरा करता,
कथन में और कर्मों में सदा तकरार होता है।
अधिक का है जिसे लालच भगाती ज़िंदगी उसको,
कभी खुद पर नहीं उसका तनिक अधिकार होता है।
रहे बेचैन वो दिन भर,बिताता रात आँखों में,
जिसे बस सिर्फ पैसों से हमेशा प्यार होता है।
रही पूँजी अधिक दौलत, बना हिस्सा उसी का वो,
नहीं आनंद जीवन में, न रिश्तेदार होता है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली