व्यापार नहीं निवेश करें
देकर पाने की चाहत में, सोचो तुम क्या पाओगे।
सोच अगर कुछ पाने की है तो तुम घाटा खाओगे।।
तुमको समझ नहीं है प्यारे, व्यापार और निवेश का।
इसमें तेरी कुछ भूल नहीं, ये प्रतिफल है परिवेश का।।
जिस समाज में बाप वसूले, कीमत पैदा करने की।
बचपन से देता आया हो, कीमत पेट को भरने की।।
तन मन धन तुम कर निवेश, संवेदित करना चाहते हो।
है सभी अभावों के मारे, तुम खुद को मारना चाहते हो।।
कर सकते तो करो निवेश, व्यापार नहीं परमार्थ रूप में।
आखिर होंगे वो कैसे मुक्त, जो पड़े हुए है भंवर कूप में।।
यह अंधेरा बहुत पुराना है, छटने में लग सकता है वक्त।
न सर्द हुआ न गर्म ही है, पर वाहिनियों में है जमा रक्त।।
उनको मानवता नहीं पता, न मानव भाव जानते है।
जो है भर देता पेट महज, उनको भगवान मानते है।।
आशा है आप समझते हो, मानव होने का पूर्ण भाव।
धीरे धीरे ही मगर एक दिन, बदलेगा उनका स्वभाव।।
जय हिंद