व्यस्त मानव
मानव का आधुनिक होना अब बहुत खलता है।
हाथ पकड़कर मजे में चलना अब कहाँ चलता है।।
कल मानव में प्रेम बहुत था आज रार पलता है।
मानव का मानव से मिलना भूलवश ही दिखता है।।
कल मानव के पास समय बहुत था आज व्यस्त दिखता है।
कल मानव धनविहिन था आज धनाढय दिखता है।।
कल मानव शिष्ट बहुत था आज अशिष्ट दिखता है।
कल मानव मिलकर था खाता,हँसता गाता और गुनगुनाता।
आज मानव छुपकर है रहता,हरदम यह सोचता रहता…
क्या कर जाऊँ कि धन में सोऊँ और धन में ही बस जाऊँ।।