व्यथित मन से बात
कारवां जिंदगी का, यूं ही चलेगा।
फिक्र छोड़ मुसाफिर, कौन क्या कहेगा !
हसरतें जितनी है तेरी , पूरी करता जा
किसे पता है कि कल क्या होगा !
जो तेरे दिल को दुखाए, वह बात न कर
स्वयं में नए- नित , आविष्कार तू कर ।
कौन क्या कहता है, इसकी फिक्र न कर
एक दिन विस्मित, तू पूरे विश्व को कर ।
आलोचनाओं से स्वयं को, विमोचित न कर
आरोपों से निज को, व्यथित न कर ।
अडिग, अचल, विशाल तू बन
जीवन के नए आयाम तू गढ़ ।