व्यथा बेटी की
कथा बनी इक गुड़िया-रानी, मानव अत्याचार की।
कण-कण माटी का शर्मिंदा, अति से व्यभिचार की।।
नभ जल थल पाताल हरेक भी, खूँ के आँसू रोता है।
किसी अभागन के संग में क्या, ऐसा भी कुछ होता है।
लाज लुटी झाड़ी में देखो, शक्ति के अवतार की ।।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
पहले लूटा वहसी ने फिर , जमकर तन पर वार किया।
बहता खूँ था तर तर तर तर, फिर झाड़ी में डाल दिया।
अंग अंग कहते बेटी के, ….. दुष्कर्मी के वार की।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
बापू .. बापू , माता.. माता, तड़प-तड़प चिल्लाई वो।
भाई को भी चीख -चीखकर, बहुत गुहार लगाई वो।
कोई रक्षा कर नहीं पाया, वक्त पे उस लाचार की।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
कल तक मात-पिता की लाडो, प्यारी-प्यारी बेटी थी।
भाई के रक्षा का बंधन, कोमल नटखट छोटी थी।
निर्वस्त्र पड़ी हालत तो देखो, मात-पिता के प्यार की।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
काँटा चुभ ना सके पाँव में, गोदी लेकर चलता था।
सर्दी-खाँसी, लू या तपन में, हाथ पैर खुद मलता था।
बेटी आज मरण शय्या पे, विधि कहो उपचार की।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
बाबुल छूटा, आँगन छूटा , ..अपना छूटा परिवार से।
बिदा हो गई दान से पहले, .. अपनों के संसार से।
कब तक ऐसे बिदा होंगी अब, बेटी इस संसार की।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
कहाँ छिपा बैठा रे भगवन, दिल क्यों नहीं दहलता है।
छोटी-छोटी मासूमों को, हर दिन, हर पल छलता है।
क्यों छलकर लिख देता किस्मत, ममता के किरदार की।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
चिथड़ा-चिथड़ा तन कहता है, बापू आज भी दुखता है।
मानवता का देख हनन लज्जा से हर सर झुकता है।
कब्र-कब्र में बेटी पड़ी हैं, लुटी हुई हर बार की।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
डरी – डरी , सहमी बालायें , कब तक ऐसे काँपेंगी।
कौन भला है , कौन बुरा है, बच्ची कैसे भापेंगी।
जतन करो लुटने नही पाये, बेटी किसी परिवार की।।
कथा बनी इक गुड़िया रानी, मानव अत्याचार की।।
संतोष बरमैया #जय