व्यक्तित्व विकास
मेरे अंतश मन में ,
अनायास हलचल हुई ।
कैसे हो व्यक्तित्व विकास,
ऐसी पाठशाला की आस।
कोई मार्गदर्शक होता आज,
जो मन का खोलता राज।
समतामूलक तत्वों का ,
करता जग में उजाल ।
मिलनसार ता, मधुरता,
निस्वार्थ ता, सबको आनंदित करता ।
हृदय मन में अज्ञानता की बंधी गांठ,
सुलझाए, लाए ज्ञानता ।
सद व्यवहार समानता ,
देशभक्ति और संस्कृति,
मन पटल के व्यक्तित्व गुण,
छाए रहे हमारे हृदय में ।
सुख में जीवन सबका,
काया रहे निरोग,
करो सब मिलकर नित्य योग ।
“””””””””अंशु कवि””””””””””””””””