*व्यंग्य*
व्यंग्य
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वाराणसी से प्रकाशित द्वैमासिक पत्रिका “कहानीकार” में मार्च – जून 1990 संयुक्त अंक में मेरा व्यंग्य “होशियार ! आ रही इक्कीसवीं सदी” प्रकाशित हुआ था ।
यह पत्रिका का वर्ष 23 ,पूर्णांक 113 था । संपादक डॉक्टर कमल गुप्त थे । मूल्य ₹5 था। कार्यालय का पता के. 30 / 37 अरविंद कुटीर (निकट भैरवनाथ) वाराणसी- 1 था।
इक्कीसवीं सदी आरंभ होने से दस वर्ष पूर्व लिखा यह व्यंग्य शायद अभी भी आपको स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करे।
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लेखक:रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451
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होशियार ! आ रही इक्कीसवीं सदी
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हमारे मोहल्ले में इन दिनों बड़ी चर्चा है कि इक्कसवीं सदी कब आएगी ? आएगी
कि नहीं आएगी ? पर, इतना तो तय है कि मोहल्ला जो बीसवीं सदी की निठल्ली
नींद में सोया हुआ था, अब इक्कीसवीं सदी की आहट सुन-सुनकर जाग रहा है । कुछ
लोगों का ख्याल है कि इक्कीसवीं सदी कभी भी आ सकती है। वे कहते हैं कि हर समय
तैयार रहो, इसके स्वागत के लिए । कभी भी टपक सकती है । मान लीजिए आप सो रहे
हैं और इसी बीच में इक्कीसवीं सदी आ जाए ? आप सोते रहे और वह चारपाई
के बगल से निकल जाए ! इसीलिए एक राय तो यह बन रही है कि इक्कीसवीं सदी अपनी
मर्जी से आएगी । जब मर्जी होगी, आएगी। जब तक मन नहीं चाहेगा, नहीं आएगी।
इक्कीसवीं सदी अपनी मर्जी की आप मालिक है । नागरिकों का काम केवल उसके
आने पर स्वागत करना है । कहिए, कैसी हैं आप इक्कीसवीं सदी ? तबीयत तो ठीक है ? आने में तकलीफ तो नहीं हुई ? यानि कि इक्कीसवीं सदी जब आए, आदमी का
काम केवल उनकी अगवानी करना है। हालचाल पूछने तक की ही इजाजत है।
हाथ पकड़कर इक्कीसवीं सदी को नहीं लाया जा सकता ।वह आए, यह उसकी मेहरबानी है।
दूसरा मत है कि यह कोई जरूरी तो
था नहीं कि इक्कीसवीं सदी इस देश में आती ही ? आखिर इक्कीसवीं सदी के इस देश में आने की चर्चा चली ही क्यों ?
कुछ लोग भारत में इक्कीसवीं सदी को बुलाने का श्रेय राजीव गाँधी को दे रहे हैं। कई नये खद्दरधारी लड़के सुरती चबाते हुए बड़े जोश से यह बात कहते हैं कि सिर्फ राजीव जी की ही बात थी जो यह इक्कीसवीं सदी हमारे जैसे पिछड़े देश में आने को राजी हो गयी। उनका मत है कि यह जुगाड़ की बात होती है, चांस भिड़ाने की बात होती है। राजीव जी की एप्रोच न होती, तो इक्कीसवी सदी इस देश में आ ही नहीं सकती थी। राजीव जी की जबरदस्त मेहनत की बदौलत ही इक्कीसवीं सदी ने इस देश में आने का न्यौता मंजूर किया है। इन लोगों का यह भी मत है कि राजीव गाँधी का प्रधानमंत्री पद पर बने रहना इसलिए भी बहुत जरूरी हो गया है, क्योंकि बगैर उनके इक्कीसवीं सदी इस देश में नहीं आ सकती। ऐसे व्यक्तियों का तर्क है कि जो मेहमान जिसके बुलाने पर आए, जब वही नहीं हो तो मेहमान भला क्या आएगा ? फिर मान लीजिए कि इक्कीसवीं सदी अगर किसी दिन इस देश में आ भी गयी तो उसे बिना राजीव जी के कमल नयनों की मदद के, देश में पहचानेगा कौन ? इक्कीसवीं सदी तो घूमती रहेगी सारा देश और फिरती रहेगी मारी-मारी! कोई सड़क पर लिफ्ट तक न देगा। इसलिए राजीव गाँधी की वह एकमात्र आशा हैं जो इक्कीसवीं सदी को न केवल पहचान सकते हैं, वरन ससम्मान भारत में ला भी सकते है।
विपक्ष के कुछ विद्वान बन्धु इसे केवल एक स्टंट मानते है कि इक्कीसवी सदी इस देश में मार्फत राजीव गांधी आएगी। वे कहते हैं, इक्कीसवी सदी कभी नहीं आएगी । एक शगुफा छोड़ रखा है,राजीव गांधी ने । आना ही होता तो अब तक आ गयी होती ! जब चार साल में नहीं आई तो, अब क्या खाक आएगी ?
इस तरह कई विपक्षी भाई इस बात पर दृढ़ हैं कि अब तो इक्कीसवीं सदी आने से रही। जब अब तक नहीं आई तो आगे भी नहीं आ पाएगी । इसी वर्ग का यह भी कहना है कि पते की बात तो यह है कि इक्कीसवीं सदी को बाकायदा भारत आने का राजकीय निमंत्रण भेजा ही नहीं गया है। कई नौजवान-किशोर-लड़के विपक्ष के उपरोक्त रहस्योद्घाटन पर प्रशंसित मुद्रा अपनाने लगते हैं । इतनी गहरी बात आज तक इक्कीसवीं सदी के बारे में कोई नहीं बता पाया था ।
मतलब यह कि आशा-निराशा, हर्ष और विवाद के बादल घिरते-घटते रहते हैं । कभी इक्कीसवीं सदी के आने की आशा बलवती होती तो कभी निराशा-सी छाने
लगती है। मोहल्ला असमंजस में है कि इक्कीसवीं सदी आएगी कि नहीं आयेगी या कि कब आएगी ? प्यास तो लग ही गयी है सारे देश को कि इक्कीसवीं सदी को देखा जरूर जाए । पर स्थिति यह है कि “अँखियाँ थक गयीं रह-रह पंथ निहार आ जा री, अब
तो इक्कीसवीं सदी,” मगर इक्कीसवीं सदी दो-ढाई साल के इन्तजार के बाद भी अभी तक आती नजर नहीं आ रही।
इधर, मौहल्ले के कई बन्धु इक्कीसवीं सदी के आने की अनिश्चितता के कारण अब उदासीनता का रुख अपनाने लगे हैं । वे मानते हैं कि चाहे जब आना हो इक्कीसवीं सदी आ जाए । आए तो बला से, न आए तो बला से ! जब आ जाए तो ठीक है। यह चैन की पराकाष्ठा की स्थिति हुई।
यानि कई स्थितियाँ है मोहल्ले की ।एक वे हैं जो लगातार जाग रहे हैं ,इक्कीसवीं सदी के स्वागत के लिए। दूसरे वह जो इक्कीसवीं सदी से उदासीन बैठे सो रहे हैं, तीसरे वह जो न सो रहें हैं, न जाग रहे हैं। आ जाए इक्कीसवीं सदी ,तो आप उन्हें जगा
सकते हैं । चौथा वर्ग वह है जो इक्कीसवीं सदी का जी-जान से स्वागत कर रहा है और राजीव गाँधी को ही इक्कीसवीं सदी का पर्याय मानकर संतोष अनुभव कर रहा है। छटा वर्ग इक्कीसवी सदी के आने की बात को ही गप मान रहा है. उसका कहना है
कि यह कभी आएगी ही नहीं । सातवाँ वर्ग सुनते हैं कि इक्कीसवीं सदी को काले झंडे दिखाने की योजना बना रहा है वापस जाओ, वापस जाओ -के नारे लगाने की उसकी तैयारी है ।.मगर दिलचस्प बात यह है कि वो भी इक्कीसवीं सदी का आना देखना चाहता है.। इक्कीसवीं सदी आएगी नहीं तो काले झंडे किसे दिखाए जाएँगे ! बहरहाल, इक्कीसवीं सदी के आने की चर्चा जोरों पर है और वह अभी तक नहीं आयी।
(समाप्त)