व्यंग्य क्षणिकाएं
कविता की भूख
पेट की आग
कभी शांत नहीं होती
तभी तो मदारी हूँ
वक़्त का शिकारी हूँ।।
2
सियासत की रोशनी में
कुछ दिखाई नहीं देता
जो दिखाई देता है
कहा नहीं जाता।।
3
एक बंदर मोबाइल ले गया
कमबख्त
सारी चैट ले गया
फेंका भी उसके घर
जिसका मोबाइल
मेरे पास आ गया।।
4
आँख से आँसू निकले
या पड़ जाए तिनका
बात एक है
हम सब एक हैं।।
5
दफ्तर का बाबू हो
या हो कोई अफसर
सरकारें बदल जाती हैं
हज्जाम करते-करते।।
6
हर कवि को दूसरे की
कविता बेकार लगती है
यही वो फार्मूला है
जिस पर सरकार चलती है।
सूर्यकांत द्विवेदी