व्यंग्य – कवि होता
….. व्यंग्य …..
किन्चित यदि मैं भी तुम जैसा , पोइट शायर या कवि होता ।
हिन्दी इंग्लिश उर्दू मिश्रित शब्दों से अभिनव कवि होता ।।
कभी मंच पर किसी पंथ पर , एक पंक्ति तब तक दोहराता ।
वाह वाह ध्वनि श्रोताओं के मुख से जब तक न करवाता ।।
करतल ध्वनि या विज्ञापन से ही इस युग का प्रिय कवि होता ।
कभी वीर रस के गीतों को पंचम स्वर में ढाल सुनाता ।
‘निर्भय’ सा उपनाम धराता , चाहे चूहे से डर जाता ।।
मनसा वचन कर्म से जग में विरला ही कोई कवि होता ।
मुक्तक संग्रह खण्ड काव्य नित मातु शारदे से लिखवाता ।
छन्द मुक्त या मुक्त छन्द सी आदि विधाओं को हटवाता ।।
गद्य पद्य ही कहलाता यदि सारा जग कवि ही कवि होता ।
नित्य नयी कल्पना सारथी को लेकर अम्बर पर जाता ।
अपने हाथों दुराग्रहों को अंतरिक्ष के पार गिराता ।।
धरती से तम दूर भगाता साथ मेरे भी यदि रवि होता ।
सारे जग की पीड़ा को मैं अपने गीतों में भर लेता ।
सुख- दुख के इस रंग- मंच पर जीवन का अभिनय कर लेता ।।
निज धन वैभव सबको देकर निर्मल जन- जन का कवि होता ।
डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ