व्यंग्य -कविता
बदल लेते हैं
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कुछ लोग अहसास बदल लेते हैं ,
कुछ लोग बिश्वास बदल लेते हैं ।
दामन तो कीचड़ से सना है लेकिन ,
कुछ लोग लिबास बदल लेते हैं ।।
अब तो चापलूसों की ही कदर होती है,
गुण्डों चोर उचक्कों पर ही नजर होती है ।
बगुनाहों पर बरस जाते हैं शोले ,
ईमानदारों की गर्दिश में बसर होती है ।।
कुछ लोग आवास बदल लेते हैं । कुछ लोग …….
आज तो बगुनाह पर गुनाहगार राज करता है,
गुनाहगार को ही सलाम समाज करता है ।
उसूल वालों को दरकिनार कर दिया जाता है,
खुशामदी मौकापरस्त पर नाज़ करता है ।।
मतलब निकल जाये तो कुछ खासमखास बदल लेते हैं । कुछ लोग ……………………
:- डाँ तेज स्वरूप भारद्वाज -: