Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Sep 2018 · 3 min read

व्यंग्य:- कलाकारों के भीष्म पितामह

कलाकारों के भीष्म पितामह के नाम से नवाजे जाने का जो सुख उन्हें प्राप्त होता था वह सुख शायद स्वर्ग आधिपत्य से भी प्राप्त न होता हो। क्षेत्र में कलात्मक गतिविधियों पर वह अपना एकाधिकार समझते थे हर कार्यक्रम की अध्यक्षता मानो उनकी बपौती थी। नौनिहाल नवागत कलाकारों को अपनी जागीर समझते। अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से वह कलाकारों को मोहने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ते थे, उन्हें शिखर तक ले जाने लाने का मानो एकमात्र रास्ता उन्हीं के दर से होकर गुजरता था। वह कला के पुरोधा थे अथवा नहीं यह तो नहीं जानते मगर इतना तय है कि कला नगरी के लाल बुझक्कड़ आवश्य थे।
वह किसी एक विधा के मर्मज्ञ बनने की अपेक्षा सर्वकालीन सर्व विधाओं के सर्वज्ञ बनने में ज्यादा विश्वास रखते थे। कोई भी कलाकार जो उनसे किसी विधा के बारे में समझना चाहे तो वह बगैर रुके अपनी राय परोसने में कभी पीछे नहीं हटते –
“ऊपर छापा हो सही भीतर कुछ भी होए।
सारी कलायें एक हैं हमसे पूछे कोय।।”
आखिर वह कला के भीष्म पितामह थे, इस बात को उन्होंने सार्थक करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी उन्होंने नीति-अनीति न्याय-अन्याय, धर्म-अधर्म को कभी आड़े नही आने दिया। वे हस्तिनापुर की हस्ती बनी रहें हस्तिनापुर रहे या न रहे इस बात पर उन्होंने हमेशा ध्यान दिया। अच्छी कला और कलाकारों को तवज्जो देने की वजाह उन चाटुकारों को महत्व दिया करते जो उनकी जय जयकार कर सकें, जो उनसे ज्यादा बेहतर न कर सके, कृष्ण से ज्यादा कर्ण के हमेशा पक्षधर रहे। उन्होंने नेतृत्व को भी एक विधा के रूप में ही स्वीकार किया और जब बात विधा की हो तो पीछे हटना धर्म संगत नही।
वह कला से कहीं ज्यादा सौंदर्य के भी उपासक थे आखिर हों भी क्यों न सौंदर्य कला का मूलाधार जो है । वे कलाकारों की कला की वजाह उनके रूप सौंदर्य को विशेष महत्व दिया करते थे, सर्व विधाओं के सर्वज्ञ जो थे। एक दूसरा कारण भी महत्वपूर्ण रहा द्वापर युग में जिस प्रेम से महरूम रहे भीष्म अब अपनी पुरानी गलती दोहराना नही चाहते थे। जो गलती उन्होंने गंगा पुत्र होने के नाते की अब उसे इस जन्म में तो कम से कम नही करने की भीष्म प्रतिज्ञा ले रखी थी। अब वे सौंदर्य के लिए पूर्णतः समर्पित थे। उसकी स्तुति में अपने कलात्मक साहित्यिक तुणीर के समस्त शब्द बाणों से अभेद्य अचूक निशाना साधते रहते और उस वक्त तक वार करते रहते जब तक कि सौन्दर्य उनके शब्द बाणों से घायल न हो जाये।
पितामह कहलाना कल तक उन्हें गरिमामयी लगता था, आज वह मन ही मन खलने लगा। पितामह शब्द से वुज़ुर्ग होने का आभास होने लगा जो उन्हें कम से कम अब तो गवारा नहीं। विद्युत और चुंबक विज्ञान के नियमों का भी उन्होंने अक्षरसः पालन किया।
सजातीय धुर्वों में प्रतिकर्षण और विजातीय धुर्वों में आकर्षण का अनुपालन जिंदगी भर करते रहे। जब भी बारी सौंदर्य की आई तो वरबस झुकाव एक तरफा हुआ और अपना भार कम करते हुए सौंदर्य के पढ़ले को भारी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने विज्ञान के नियमों को भी किसी कलात्मक विधा से कम नही आँका इसीलिए तो नियमों से हटकर वह कभी नहीं भागे।
बाणों की शैया पर लेट करें अपनी इच्छा मृत्यु का प्रदर्शन तत्कालीन समय में किया उसे वह आज तक न भूल पाए इस जन्म में भी उन्होंने अपने अहम को बचाए रखने के लिए न जाने कितने कनिष्ट बाणों की शैया पर लेटना पसंद किया। आखिर वो थे ही कलाबाजियों के भीष्म पितामह।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’

Language: Hindi
Tag: लेख
449 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*मॉं भजनों को सुन-सुन कर, दौड़ी-दौड़ी आ जाना (गीत)*
*मॉं भजनों को सुन-सुन कर, दौड़ी-दौड़ी आ जाना (गीत)*
Ravi Prakash
“ बधाई आ शुभकामना “
“ बधाई आ शुभकामना “
DrLakshman Jha Parimal
*** रेत समंदर के....!!! ***
*** रेत समंदर के....!!! ***
VEDANTA PATEL
कई बार हम ऐसे रिश्ते में जुड़ जाते है की,
कई बार हम ऐसे रिश्ते में जुड़ जाते है की,
पूर्वार्थ
दोहा
दोहा
दुष्यन्त 'बाबा'
💐प्रेम कौतुक-502💐
💐प्रेम कौतुक-502💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
अज्ञानता निर्धनता का मूल
अज्ञानता निर्धनता का मूल
लक्ष्मी सिंह
2728.*पूर्णिका*
2728.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तेवरी में करुणा का बीज-रूप +रमेशराज
तेवरी में करुणा का बीज-रूप +रमेशराज
कवि रमेशराज
"पता नहीं"
Dr. Kishan tandon kranti
लाखों रावण पहुंच गए हैं,
लाखों रावण पहुंच गए हैं,
Pramila sultan
कौन याद दिलाएगा शक्ति
कौन याद दिलाएगा शक्ति
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
आप दिलकश जो है
आप दिलकश जो है
gurudeenverma198
साल ये अतीत के,,,,
साल ये अतीत के,,,,
Shweta Soni
#विषय --रक्षा बंधन
#विषय --रक्षा बंधन
rekha mohan
खुल जाता है सुबह उठते ही इसका पिटारा...
खुल जाता है सुबह उठते ही इसका पिटारा...
shabina. Naaz
परिवार होना चाहिए
परिवार होना चाहिए
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
देख बहना ई कैसा हमार आदमी।
देख बहना ई कैसा हमार आदमी।
सत्य कुमार प्रेमी
बुश का बुर्का
बुश का बुर्का
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
Time Travel: Myth or Reality?
Time Travel: Myth or Reality?
Shyam Sundar Subramanian
पर्वतों से भी ऊॅ॑चा,बुलंद इरादा रखता हूॅ॑ मैं
पर्वतों से भी ऊॅ॑चा,बुलंद इरादा रखता हूॅ॑ मैं
VINOD CHAUHAN
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
चप्पलें
चप्पलें
Kanchan Khanna
आपकी सोच
आपकी सोच
Dr fauzia Naseem shad
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
అందమైన తెలుగు పుస్తకానికి ఆంగ్లము అనే చెదలు పట్టాయి.
అందమైన తెలుగు పుస్తకానికి ఆంగ్లము అనే చెదలు పట్టాయి.
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
रक्षा में हत्या / मुसाफ़िर बैठा
रक्षा में हत्या / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
दिव्य दृष्टि बाधित
दिव्य दृष्टि बाधित
Neeraj Agarwal
मोलभाव
मोलभाव
Dr. Pradeep Kumar Sharma
परिपक्वता
परिपक्वता
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
Loading...