Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Nov 2024 · 3 min read

#व्यंग्यात्मक_आलेख

#आज_की_बात-
अब क्या और क्यों मनाना बाल दिवस…?
न बाल-बच्चों का आज सुरक्षित, न आपके अपने बाल।
[प्रणय प्रभात]
वैसे तो वैमनस्य की राजनीति ने मासूम बच्चों से उल्लास का एक दिन एक दशक पहले छीन ही लिया है। जिसका अब नाम-निशान तक बाक़ी नहीं रहने दिया गया है। फिर भी, जो लोग व संस्थान अपने स्तर पर इसे मना रहे हैं, उन्हें सोचना चाहिए कि क्या आज के परिवेश में इस एक दिवस की कोई सार्थकता है। ऐसे माहौल में जब, स्कूल वैन से लेकर स्कूल के वॉशरूम तक बचपन सुरक्षित नहीं। इस दौर में जब बचपन यातनाओं के बीच आत्मघात की कगार तक आ पहुंचा है। कथित नई शिक्षा नीति के उस शर्मनाक दौर में जहां अपने वज़न से भारी बस्ता उठा कर बचपन स्कूल की ओर भागता नहीं, रेंगता या घिसटता दिखाई देता है।
फोकटियों व रेवड़ीखोरों की आबादी बढाने में स्पर्द्धा कर रहीं केन्द्र व राज्य की सरकारों ने देश की आदर्श शिक्षा प्रणाली को संशय व अनिश्चितता के उस चौराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां बच्चों से लेकर अभिभावक तक बौराए हुए हैं। कथित नवाचारों की प्रयोगशाला में आधुनिक शिक्षा सतमासे शिशु के भ्रूण की भांति परखनली में पड़ी नज़र आ रही है। शिक्षक तुगलक-छाप नेताओं और निरंकुश नौकरशाही की रस्साकशी के बीच “वासुकी नाग” की तरह विवश हैं। रिमोट पर निर्भर रोबोट की तरह। अमृत-अर्जन के नाम पर अरबों के खर्चे से योजनाओं का सागर मथा जा रहा है। निकल रहा है केवल “कालकूट।” जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, नस्ल, लिंग भेद की आड़ में। महादेव अंतर्ध्यान हैं और महादानव दृष्टिगत, जो सब कुछ लील जाना चाहते हैं। सिवाय उस हलाहल है, जो भावी पीढ़ियों व उन्हें ऊंचाई देने वाली सीढ़ियों के लिए है।
लगता है कि ठीक ही किया बचपन से बाल-दिवस छीन कर। उसका औचित्य भी क्या था आज के हालात में। जब 20 फीसदी को छोड़ कर बाक़ी को छला भर जा रहा है। मुफ़्त के उस पाठ्यक्रम के नाम पर, जो सीख-रहित है। ख़ैरात रूपी उस मध्याह्न भोजन के नाम पर, जो स्वाद और सेहत से कोई सरोकार नहीं रखता। उन सौगातों के नाम पर जिनसे सियासी स्वार्थ की सड़ांध उठती है। जो बच्चे इस विद्रूप के बीच अपनी मेधा व मेहनत के बल पर सफलता पाने में कामयाब हो जाते हैं, उनकी उपलब्धि पर मोबाइल, टेबलेट, लेपटॉप व सकूटी के टैग लटका कर सरकारें सारा मजमा लूट लेती हैं और शिक्षा के नाम पर साल भर कमीशन व मुनाफाखोरों के हाथों लुटने वाले मां-बाप गदगद भाव से कृतार्थ होकर नतमस्तक नज़र आने लगते हैं। जंगलराज की उन मूर्ख व मुंडी हुई भेड़ों की तरह, जो अपने ही बालों से बना कम्बल पाकर धन्य हो जाती हैं। वो भी उन रंगे सियारों व भूखे भेड़ियों के हाथों, जिनकी दृष्टि उनके बाद उनके अपने मेमनों पर है। खाल उधेड़ने और बाल नोचने के लिए।
इसलिए कहना पड़ रहा है कि बंद करो विकृत और विसंगत परिदृश्यों में इतिहास बन चुके बाल दिवस के प्रपंच। अब मनाना इतना ही ज़रूरी हो तो तब मनाना बाल दिवस, जब मासूम बचपन को दिला सको पढ़ाई के नाम पर जारी असमानतापूर्ण व शर्मनाक परिदृश्यों से छुटकारा। जब समझ सको अपने व अपनी नस्लों के साथ बरसों से जारी लूट व षड्यंत्र के खेल को। फ़िलहाल, आराम से सो लो। आने वाले कल में पूरी सामर्थ्य से रोने के लिए। तय है कि न आप सुधरना चाहेंगे, न वो सुधारना। भेड़ें होंगी, तभी तो परवान चढ़ेगा ऊन का कारोबार। जहां तक अपना सवाल है, अपन यक्ष की तरह सवाल उठाते रहेंगे। प्रसंगवश मानें या प्रयोजनवश, मर्ज़ी आप की। आज की बात का समापन नई पीढ़ी के लिए स्लो-पॉइजन के विरुद्ध इस एक स्लोगन के साथ:-
“एक ही इच्छा। समान शिक्षा।।
👌👌👌👌👌👌👌👌👌
●संपादक●
[न्यूज़&व्यूज़]
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

1 Like · 12 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
..
..
*प्रणय*
आ लौट के आजा टंट्या भील
आ लौट के आजा टंट्या भील
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
मैं मन की भावनाओं के मुताबिक शब्द चुनती हूँ
मैं मन की भावनाओं के मुताबिक शब्द चुनती हूँ
Dr Archana Gupta
सत्य खोज लिया है जब
सत्य खोज लिया है जब
Buddha Prakash
रुक्मिणी संदेश
रुक्मिणी संदेश
Rekha Drolia
सब भूल गये......
सब भूल गये......
Vishal Prajapati
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
खालीपन
खालीपन
करन ''केसरा''
मुक्तक... छंद मनमोहन
मुक्तक... छंद मनमोहन
डॉ.सीमा अग्रवाल
गौरी सुत नंदन
गौरी सुत नंदन
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
टूटी बटन
टूटी बटन
Awadhesh Singh
युही बीत गया एक और साल
युही बीत गया एक और साल
पूर्वार्थ
"फूल"
Dr. Kishan tandon kranti
I'm always with you
I'm always with you
VINOD CHAUHAN
4186💐 *पूर्णिका* 💐
4186💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
*अब सब दोस्त, गम छिपाने लगे हैं*
*अब सब दोस्त, गम छिपाने लगे हैं*
shyamacharan kurmi
रुख आँधी का देख कर,
रुख आँधी का देख कर,
sushil sarna
*
*"कार्तिक मास"*
Shashi kala vyas
कोशिश करना आगे बढ़ना
कोशिश करना आगे बढ़ना
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
यूं ही कोई शायरी में
यूं ही कोई शायरी में
शिव प्रताप लोधी
मंत्र :या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता।
मंत्र :या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता।
Harminder Kaur
प्यार में बदला नहीं लिया जाता
प्यार में बदला नहीं लिया जाता
Shekhar Chandra Mitra
*उपस्थिति रजिस्टर (हास्य व्यंग्य)*
*उपस्थिति रजिस्टर (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
दर्द अपना संवार
दर्द अपना संवार
Dr fauzia Naseem shad
इसलिए कठिनाईयों का खल मुझे न छल रहा।
इसलिए कठिनाईयों का खल मुझे न छल रहा।
Pt. Brajesh Kumar Nayak
ले चल मुझे भुलावा देकर
ले चल मुझे भुलावा देकर
Dr Tabassum Jahan
वो दौड़ा आया है
वो दौड़ा आया है
Sonam Puneet Dubey
ख़ामोशी
ख़ामोशी
Dipak Kumar "Girja"
"सफर,रुकावटें,और हौसले"
Yogendra Chaturwedi
चिड़िया
चिड़िया
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Loading...