वो 500 का नोट
मिस्टर मेहता 500 व 1000 रुपयों की गड्डी लेकर बैंक की लाइन में खड़े थे। नवंबर 2016 की रात को तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी ने 500 व 1000 के नोटों को बॉद करने की घोषना करदी थी। अत: सभी अपने पैसों को जितनी जल्दी हो सके अपने अकाउंट में जमा कराने के लिए आतुर थे। मिस्टर मेहता भी उनमें से एक थे। किसी आगामी कार्य के लिए उन्होंने कुछ रुपये घर पर रखे हुए थे। लेकिन अब क्या हो सकता था। अत: उन्होंने इन्हें बैंक में डालना ही उचित समझा।
इसी कार्य के लिए वे काफी समय से लाईन में खड़े थे। अचानक उनके मन में एक विचार आया और उन्होंने उन रुपयों की गड्डी में से एक 500 का नोट निकाला और अपनी जेब में डाल लिया।
इस घटना को काफी समय व्यतीत हो चुका था। समय अपनी रफ्तार से चलता रहा और मिस्टर मेहता कब 68 वर्ष के हो गए पता ही न चला। खैर आज उनका जीवन एक आदर्श जीवन है। प्रभु ने हर सुख दे दिया है उन्होंने। कुछ वर्ष पहले पत्नी की मृत्यु ने उन्हें नितांत एकाकी बना दिया था परंतु अपने प्रपौत्र तुषार में उन्होंने अपना साथी ढूँढ लिया। अब तो हर समय वे उसके साथ व्यस्त रहते। तुषार भी उनके जैसा अनुभवी सामीप्य पाकर संस्कारी व कुशाग्र बुद्धि का हो गया था। तुषार के माता-पिता तो मात्र निमित्त थे अन्यथा उसकी परवरिश में उसके दादा मिस्टर मेहता का एक महत्वपूर्ण योगदान था।
जिस तरह से मिस्टर मेहता ने तुषार की देखभाल की थी ठीक उसी तरह वे उस 500 के नोट की देखभाल करते थे।
आज अचानक उन्हें उस उद्देश्य की याद आ गई जिसके लिए उन्होंने उस 500 के नोट को इतने वर्षों तक सावधानी से रखा हुआ था। आज उन्हें अपने दस वर्षीय पोते का स्कूल से आने का बेसब्री से इंतजार था। तुषार की मम्मी से वे कई बार पूछ चुके थे कि तुषार स्कूल से आ गया या नहीं।
तुषार स्कूल से आकर कुछ समय बाद अपने होमवर्क को करने के लिए अपने दादा के पास आ गया। दादा जी तो मानो उसके आने के इंतजार में ही थे। उन्होंने अपनी जेब से उस 500 के नोट को निकाला और अपने पौत्र के सामने रख दिया।
“ये क्या है दादा जी” तुषार ने नोट को उठाया और उलट पलटकर देखने लगा।
“अरे! दादा जी ये तो मुझे 500 रुपये का नोट लगता है।”
दादा जी मुस्कुरा पडे़। मानो आज उनका उद्देश्य पूरा होने का समय आ गया था।
“बेटा तुषार ये 500 का ही नोट है जो हमारे जमाने में चलता था। पर सरकार ने इन्हें अचानक बंद कर दिया और ये चलने बंद हो गए।” दादा ने एक चमकीली मुस्कान के साथ अपने पौत्र को यह जानकारी दी।
“पर ऐसे अचानक बंद करने से तो दादा काफी पैसों का नुकसान हो गया होगा ना।”तुषार ने नोट को हैरत भरी नज़रों से देखते हुए अपने दादा जी से पूछा।
अब दादा जी एक प्रोफेसर की तरह तन गए और बोले-“अरे नहीं बेटा सरकार ने 50 दिन का समय दिया था अपने पैसों को अपने अकाउंट में जमा करने का। और उन्होंने उसी समय ये जो तुम 500 और 2000 का नोट आज देखते हो उसी समय छपवाने शुरू कर दिए थे।”
“पर जिन्होंने काली कमाई जोड़ रखी थी उनका काफी नुकसान हुआ। इतने मोटे पैसे का वे तुरंत निदान न कर सके और सरकार ने उनका वह पैसा जब्त कर लिया।” दादा ने तुषार को जानकारी देते हुए समझाया।
“ये काली कमाई क्या होती है दादा?” तुषार ने पूछा।
“बेटा जो लोग टैक्स नहीं भरते और सरकार को अपनी जिस कमाई का ब्यौरा नहीं देते वह काली कमाई होती है।”
“ओह” तुषार ने होठ सिकोडे़।
अचानक उसे कुछ याद आया-“दादा फिर तो ये 500 का नोट आपका बेकार हो गया ना।”
“हाँ” दादा ने मुस्कुराते हुए कहा। “पर बेटे ये मैंने तुम्हें दिखाने के लिए इसे रख लिया था किजब मेरा पोता बड़ा हो जाएगा उसे दिखाऊँगा कि हमारे जमाने में ऐसे नोट चलते थे।”
तुषार बहुत देर तक गंभीरता से नोट को निहारता रहा।
फिर उसने अपने दादा से कहा-“दादा एक बात कहूँ अगर आप बुरा न मानो।”
“निस्संकोच कहो बेटा”दादा बोले।
“दादा पैसों के उस बंदी के दौर में मेरे ख्याल से ये आपने निहायत बेवकूफ़ी वाला फैसला लिया, जो आपने इस नोट को निकाल लिया। इतना बड़ा नोट बेकार कर दिया आपने। जब अभी भी 500 के नोट की इतनी वैल्यू है उस समय कितनी होगी।”
तभी तुषार की मम्मी ने उसे किसी काम से आवाज लगा ली।
तुषार बाहर चला गया परंतु दादा जी को गहरे चिंतन में व सकपकाया सा छोड़ गया। उन्होंने तो सोचा था कि तुषार इसे देखकर कितना खुश होगा। परंतु उसकी कोई प्रतिक्रिया न देखकर तथा उसका जवाब सुनकर उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने पानी से भिगोया हुआ जूता उनके मुँह पर मार दिया हो।
और ऐसा सोचना मिस्टर मेहता का उचित भी था क्योंकि नोट को बचाकर रखने की इतने वर्षों की मेहनत उनकी बेकार जो चली गई थी।
सोनू हंस