वो ग़ाफ़िल को ताने सुनाने चले हैं
बताओ जी क्या क्या बनाने चले हैं
अदब के जो याँ कारख़ाने चले हैं
जो हों कानफाड़ू जँचें बस नज़र को
अब ऐसी ही ख़ूबी के गाने चले हैं
न जिनको हुनर है बजाने का ढोलक
सितम है वो हमको नचाने चले हैं
जब आने लगी दिल से बदबू तो देखो
जनाब आज उसको लुटाने चले हैं
चले तो सही तीर नज़रों के उनके
भले मेरे दिल के बहाने चले हैं
नहीं रेंगता जूँ है कानों पे जिनके
वो ग़ाफ़िल को ताने सुनाने चले हैं
-‘ग़ाफ़िल’