136. वो हमसे पराये हो गये
हम जिनका इंतजार किया करते थे,
बड़े शिद्दत से हर खुशी में ।
ना जाने क्यों आज वो,
हमसे पराये हो गये ।।
जिसे काफी चाहा था,
दिलोजान से मैंने,
उसे आज लगते हैं जैसे,
हम किराये के हो गये ।।
हमें जख्म पर जख्म देना,
अब उनकी आदत बन गई ।
डर लगने लगा उनसे हमें,
इसलिये चुप रहने की आदत पड़ गई ।।
परिवार में पाँच लोगों का,
दो समय का खाना बनाना,
अब उनकी मुसीबत बन गई ।
घर में कहलाने वाली वो बहु,पत्नी और माँ,
ना जाने कैसे क्यों वो निर्दयी बन गई ।।
उसे अपनों के साथ,
समय गुजारना अच्छा नहीं लगता ।
घर के लोग भले तरस जायें, बातें करने को,
पर औरों को तरसाना अच्छा नहीं लगता ।।
सास ससुर पति और बच्चा,
उन्हें अब सब पराये लगते हैं ।
उसे पापा मम्मी भाई बहन और जीजा ही,
केवल अपने दिखते हैं ।।
सालगिरह वो मनाती हैं ऐसे,
पति उनका मर गया हो जैसे ।
उन्हें सालगिरह मनाने से,
फायदा क्या होता है ।
जब पति के लिए उसे,
तनिक समय ही नहीं मिलता है ।।
सती हो या सावित्री,
ऐसी तो नहीं होती होंगी ।
जो अपने पति को,
तिल तिल कर रूलाती होंगी ।
उससे प्यार और उसका इंतजार करने के बजाए,
चुपचाप जाकर कमरे में सो जाती होंगी ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 12/06/2021
समय – 11:06 ( रात्रि)
संपर्क – 9065388391