वो शख्स
वो शख्स … फूल था या धूल था
ना मालूम क्या था वो
आ बैठा जबसे मेरे जिस्त ए किताब में
महकता भी रहा बहकता भी रहा वो
कभी गर्द सा उठा चश्म से दरिया निकल गया
कभी महकती नजुकी से होठ मेरे छिल गया वो
~ सिद्धार्थ
वो शख्स … फूल था या धूल था
ना मालूम क्या था वो
आ बैठा जबसे मेरे जिस्त ए किताब में
महकता भी रहा बहकता भी रहा वो
कभी गर्द सा उठा चश्म से दरिया निकल गया
कभी महकती नजुकी से होठ मेरे छिल गया वो
~ सिद्धार्थ