– वो विटप
वो देखो! मेरा पुश्तैनी खेत खलिहान
दिख रहा उसमें जो विटप विशाल
उसके हर अंग पर लिखा मेरा नाम
याद है छुटपन में मैंने खाकर आम
गुठ्ठी को छुपा दिया खेत की धराधाम
मिट्टी के गर्भ में छुपा वो बीज
नहीं कर रहा था आराम,
चंद पानी की बूंदों से अंकुरित
हो धरा फोड़ फिर से निकला
लेकर नया जन्म एक शाम
मंद पवन के सहलाने से
पनपने लगा नव अंकुर
सूरज की चंद किरणों से
पोषित होकर बढ़ता हुआ विशाल
देखती उसका अद्भुत जीवन काल
उस पर छाए ढेरों आम,
लिखा है जैसे उन पर मेरा नाम!!
– सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान