वो राधा से फिर न मिला ।
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उम्र आठ तक माखन चोर सी देख लीला
कृष्ण रूप तन से अंग संवर जाए मोर पंख नीला।।
नटखट,चतुर,समझ,तेज,बुद्धि, जो गोपियों संग खेल जाए
राधा को देख, कृष्ण समझ तेज मन बुद्धि सब हुआ ढीला।।
वो गहरा था जो भी था, हिसाब नही था प्रेम था या रोग था
ये नाजुक उमर साढ़े सोलह तक राधा कृष्ण का सिलसिला।।
फिर मिला गुरु संग, चौंसठ कला पर राज किया
वो जान गया राजनीति, सूखा खेत कही बंजर गीला।।
दुनिया को संवारने चल दिया वो चोर
मां का दुलारा जो कभी राधा से दूर न हिला।।
“राव” ये जान की मंजिल मंजिल सबको राह दिखाता गया
पर ये जान की कृष्ण की याद थी उमर सोलह जीवन शीला।।
वो प्रेम का फूल था ये जान के फिर न खिला
मन भीतर तरस गया वो राधा से फिर न मिला।।