वो रातें
वो ख़ूबसूरत रातें,
वो बे-हद हसीन,
काजल सी काली रातें,
जिनमें चाँद सूरज सा चमकता है।
वो उल्फ़त की रातें,
जिनमें चमेली की खुशबू
हवा में तैरती है।
हाँ वहीं रूमानी रातें,
जिन्हें हम साथ तक न गुज़ार सके।
उन रातों की बे-अंत गूँगी गहराइयों में कहीं
सारे ख़्वाब हमारे,
आख़िरी साँसे लेकर,
एक दर्द भरी आह भरकर,
अपनी आख़िरी नींद में खो गए,
कहीं चुपचाप ही मर गए।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’