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29 Jul 2018 · 2 min read

वो राजनीति हो गई

प्रेम करूं जिससे वो आरक्षण सी मचल गई

साथ रही कभी मेरे कभी विपक्ष के संग गई

***

वो रोती और बिलखती हिरनी सी उछल गई

होकर फ़िदा अदाओं पे रहें ढ़ूढ़ते किधर गई

***

वो गयी जिधर भी सारी ही रौनक उधर गई

वो रौनक के और रौनक उसके नाम हो गई

***

सारी श्री वहीं रही वो श्री की आवास हो गई

इतनी विकसित हुई कि स्वयं विकास हो गई

***

जब जुड़ी किसी से वो उसी के पास हो गई

सहती बदनामी वो मुन्नी सा बदनाम हो गई

***

वो कभी हुयी पानी कभी सुलगती आग हुई

कभी जेल के अंदर वो कभी छूट बेदाग गई

***

आम्र बृक्ष सा बौराई फागुन की फाग हो गई

मंद-मंद मुस्कान हर मन की अनुराग हो गई

***

जाड़ों में धूप गुनगुनी बरखा में फुहार हो गई

ऋतु बसंत वन उपवन में फैली बहार हो गई

***

तपती दोपहरी की रही बरसती आग हो गई

संक्रमित प्रदूषित जल धारा की झाग हो गई

***

वो तो नई-नई चालें चल- चल मशहूर हो गई

जिसने पहनाया ताज उसे उसी से दूर हो गई

***

रेखाएं खुद खींचा खुद ही उसके पार हो गई

जाकर के उस पार मूक बधिर लाचार हो गई

***

संसद न चलने देती कूद-कूद हुड़दंग हो गई

इतने रंग चढ़ाया इसने रंगों में बदरंग हो गई

***
कहीं हो गई पास और कहीं वो फेल हो गई

इतना खेली कि खेल- खेलकर खेल हो गई

***

बिष बोती उगती फैली बिष की बेल हो गई

वो अप्रिय बातें बोल- बोल अनमोल हो गई

***

विचलित विचार वो देश प्रेम से विरत हो गई

निज हित पर उत्सित प्रबंधित त्वरित हो गई

***

न करें किसी से प्यार वो सबकी प्यार हो गई

वो कितनी बार बिकी खुद ही बाजार हो गई

***

वो कुछ की हुई अनीत कुछ की नीति हो गई

कहते रहे राज की नीति वो राजनीति हो गई

***

–राममचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’

Language: Hindi
1 Like · 205 Views
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