वो यादें
जाते जाते तुमसे गले मिलना …वो तो एक बहाना था
अपनी दिल की धड़कनों को तुम्हारे अंदर छोड़ कर जाना था ।
तुम जो यू फिर से एक बार मुड़ कर दीदार करती हो …
ना जाने क्यू ऐसा तुम बार बार करती हो ।
इस कद्र इश्क़ है तुम्हे तो बताती क्यों नही ,
ना जाने कब इतवार से सोमवार करती हो ।
तुम छिप सी गयी हो बादलों में आजकल शायद …
कभी बाहर आकर क्यूँ नही दीदार करती हो ।
चाँद भी आजकल नाराज है तुमसे ,
क्या पता कब कौन सी त्यौहार करती हो ।
✍️हसीब अनवर