Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 May 2023 · 5 min read

“वो यादगारनामे”

“वो भी कोई जमाना था,
जहां अपनों का दर्द अपनों का फसाना था”

बात कुछ यहां से शुरू होती है …..
जहा जाड़े के कुछ पाख गुजर रहे थे और वहां गाड़ियों के पहिए , जिसमें करवा चौथ के आसपास खेतों में चांदनी रात में बैलों के पैरों तरे कुचलवाकर धान के गठ्ठो से चावल के दाने निकाल कर रखे जाते थे ,उस खाली बोरे के एक टुकड़े को जलाकर उसकी राख को आयल में डालकर जो ओंगना बन जाता था। उससे बैलगाड़ी के पहिए की पात को दादू के द्वारा ओंगा जा रहा था। वहीं थोड़ी दूर खेत में जहां नलकूप के पाइप से आता हुआ पानी गड़े में गिरता था वहीं पर एक बड़े से पत्थर पर बैठकर छोटे दादू बास की पिंचो से बनी हुई चटाई को पानी में गला रहे थे। जिससे वह आसानी से मुड़कर बल्लियों के दोनो तरफ बेलनाकार बैल गाड़ी के ऊपर लग जाए ।
जिससे गर्मियों में नर्मदा जी के सफर पर जाते समय बच्चों और घरवाली को धूप न लगे। आसानी से जिसके नीचे धान के पियार का बना गद्दा रखा जा सके और उसपर निर्भिकता से सामान रखा जा सके । धीरे धीरे समय गुजरा दोपहर की धूप भी अपनी गर्म हवाओं को लेकर गलियों में दस्तक देने लगी थी।
रामनवमी का दिन आने वाला था मोहल्ले के सभी लोग दो-तीन दिन पहले ही नर्मदा मैया में कथा कराने के लिए तैयारियों में जुट गए थे। कोई गंजी कि जुगाड करता तो कोई हलवा पूरी बनाने के लिए कढ़ाई की, कोई बाजार सब्जी लेकर जाता और पैसो का इंतजाम करता ।
तो कोई साहूकार से उधार मांगकर लाता।यहां दादा और बड़े भैया चर्चा में लगे थे की भले ही हमारी गुंजाइश ना हो मगर पुरखों से चली आ रही परंपरा को तो निभाना पड़ेगा। यहां जुगल के पास दो बैल तो थे लेकिन गाड़ी नहीं थी और सभी लोग बैलगाड़ी से जाया करते थे ।
तो वह किसी की गाड़ी भी नहीं मांग सकता था वो खेत की मेढ़ पर बैठकर माथे पर हाथ रखकर गर्दन झुकाए हुए मन ही मन में बाते करते हुए कह रहा था…
अगर मेरे पास भी बढ़ई को देने के लिए पैसे रहते तो में भी गाड़ी बनवा लेता लेकिन ,यहां तो खेत में बउनी करने के लिए बीज लाने के लिए भी पैसे नही है तो गाड़ी क्या खाक बनबाऊंगा।
फिर अचानक निमिया जो देखने में बहुत खूबसूरत दिखती थी रोटी और तरबूज लेकर आ गई और बोली..
आओ अब कलेऊ कर लो ,किस सोच में डूबे हुए हो ?
जुगल आया मटके के पानी से हाथ धोए और तरबूज को फोड़कर असके साथ रोटी खाने लगा..
निमिया नीम के पेड़ के नीचे बैठे बैठे उसे रोटी खाते हुए कुछ जिज्ञासा भरी नजरो से उसे देख रही थी मानो कुछ कहना चाहती हो ।
कुछ देर बाद बोली सब लोग कल सुबह नर्मदा जी के लिए बैल गाड़ियों से भोर होते ही निकलेंगे। परसों तक पहुंच जाएंगे शायद।
जुगल बोला तो मैं क्या करूं…
अगर हमारे पास भी बैलगाड़ी होती तो हम भी अपने प्रवीण , मुस्कान,संजा , नंदिनी और सपना को लेकर जाते लेकिन कुछ सालों से खुदा ऐसा रूठा है हम पर जैसे हमने कुछ बिगाड़ दिया हो उसका !
न ही ईख ढंग से होती न गेहूं और न ही चना।
फिर निमिया हां कहकर थोड़ी देर तक चुप बैठी रही …
और फिर जुगल के थोड़े करीब आकर धीरे से बोली क्यों न तुम छोटे भईया की ससुराल चले जाओ वहा से गाड़ी ले आओ….
जुगल बोला “फिर वो किस साधन से जायेंगे जी”
फिर निमिया बोली अरे मेरे कान में ऐसी बात आई है की उनका एक बैल मर गया है तो वह नही जा रहे हैं…
फिर थोड़ी देर चुप रह कर सहसा जुगल बोला अगर मैं गाड़ी लेने गया तो उन्होंने अपना एक बैल मांग लिया फिर. ..
नहीं यह मुझे ठीक नहीं लगता मैं नहीं जाऊंगा
अगर उन्हें बैल की जरूरत रही तो लेकिन उन्हें दे दूंगा,,,
फिर रोष में आकर निमिया बोली “तो हमने क्या यहां बैलों की दुकान खोल रखी है जो किसी को भी फ्री फोकट में अपने मोती और शेरा दे देंगे ”
ना जी मैं नहीं देने दूंगी …
संयोगवश वहीं खेतों से छोटी बहू के बब्बा गुजर रहे थे वह बोले जय रामजीकी लल्ला । जुगल बोला जय राम जय राम बब्बा जी आप यहां?
फिर बब्बा बोलें हां मैं हार की तरफ जा रहा था तुम्हें देखा सोचा तुमसे मिलते चलू …
जगल बोला अच्छा किया आओ बैठो वह नीम की छांव मैं खटिया पर बैठे निमिया बोली मैं जाती हूं चाय बना कर लाती हूं… बब्बा ने कहा नहीं नहीं बिटिया रामू की बाई ने जब मैं हार के लिए निकल रहा था तब कपबशी में चाय दे दी थी तो मैं वही पीकर आ गया…
तुम परेशान मत होओ…
निमिया ऐसे तो बहुत कंजूस स्वभाव की थी लेकिन , इन मामलों में उसका दिमाग कुछ यूं चलता था कि, अगर मेरे बब्बा छोटी बहू के यहां आए और उसने चाय नहीं दी फिर…
अगर मैं चाय पिलाऊंगी तो वह भी देगी…
क्योंकि व्यवहार बनाए रखने से ही तो आगे बढ़ते हैं…
उसने बब्बा की एक ना सुनी और दौड़ती हुई चाय बनाने के लिए चली गई…
फिर बब्बा बोले सब तैयारियां हो गई लल्ला कल जाने के लिए…
वह कुछ ना बोला उदासी में सिर झुकाए हुए बैठा रहा बैठा रहा।
फिर बब्बा बोले क्या हुआ लल्लाजी बोलते काहे नहीं कुछ
फिर कुछ देर बाद सेहमा सेहमा बोला…
मेरे पास बैलगाड़ी कहां है जो मैं वहां जाकर कथा करापाऊं…
फिर बब्बा बोले यहां खड़ी रहती थी वह किसकी थी मैं तो सोच मैं तो सोचता था कि वह तुम्हारी है…..
जुगल बोला वह तो सरदार जी की थी जो मिल में धान लेकर चावल निकलवाने आए थे ..
कुछ दिनों पहले आए तो ले गए…
बाबा ने तो क्या बात हुई हमारा तो बैल गुजर गया तो हम तो जाने से रहे हमारी ले जाओ…
जुगल ने कहा आपकी कैसे ले जा सकता हूं….
बब्बा बोले काय लल्ला हम इतने पराए हो गए जो ऐसी बात कर रहे हो…
हमको कुछ नहीं सुनना तुम अभी जाओ और हमारी गाड़ी लेकर आओ… और निमिया से बोल देना तैयारी कर ले भोर होते ही सबके साथ निकल जाना….
हमारा क्या है बूढ़े टेढ़े आदमी कभी भी चले जाएंगे… अब कल ही जरूरी थोड़ी है हमारा जाना…
तुम जाना तो वहां कथा कराना, नर्मदा मैया में डुबकी लगाना, नाव से मैया जी के उसपार अपने आराध्य देवता और समाधी लेने वाले नागा साधुओं के बच्चों को आशीर्वाद दिलवाना जिससे घर में धन दौलत शोहरत सब आएगी…
निमिया उतने में कपबसी में चाय ले आई…
उन्होंने चाय पी और जय राम जी करके कहा अब में चलता हूं… हार में बनिहार लगे हैं उन्हें भी देखना पड़ेगा गेहूं तरीके से काट रहे हैं या नही… फिर डंडा उठाया और मूछों पर ताव देते हुए धोती के पल्ले को दाएं हाथ में उठाकर सीना तान कर कुछ गुनगुनाते हुए पगडंडियों के बीच से नदी के किनारे किनारे चल दिए….
जब निमिया को है पता चला कि बब्बा ने गाड़ी दे दी है..
और कल बोर होते हुए वह भी सभी के साथ नर्मदा जी के लिए रवाना होंगे..
तो वह है बहुत खुश हुई लेकिन मन ही मन में उदास थी…

कविताओं में ~મુસાફિર..

कहानियों में “राजुल के अल्फाज”…

Language: Hindi
438 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
बेटे की माॅं
बेटे की माॅं
Harminder Kaur
बीती एक और होली, व्हिस्की ब्रैंडी रम वोदका रंग ख़ूब चढे़--
बीती एक और होली, व्हिस्की ब्रैंडी रम वोदका रंग ख़ूब चढे़--
Shreedhar
*साम्ब षट्पदी---*
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
विजय दशमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
विजय दशमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
Sonam Puneet Dubey
पिता
पिता
Swami Ganganiya
फैसला
फैसला
Dr. Kishan tandon kranti
रास्ते पर कंकड़ ही कंकड़ हो तो भी,
रास्ते पर कंकड़ ही कंकड़ हो तो भी,
पूर्वार्थ
अफसोस मेरे दिल पे ये रहेगा उम्र भर ।
अफसोस मेरे दिल पे ये रहेगा उम्र भर ।
Phool gufran
बचपन में मेरे दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी,पर समय सबके पास था
बचपन में मेरे दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी,पर समय सबके पास था
Ranjeet kumar patre
ଖେଳନା ହସିଲା
ଖେଳନା ହସିଲା
Otteri Selvakumar
4337.*पूर्णिका*
4337.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जितने भी मशहूर हो गए
जितने भी मशहूर हो गए
Manoj Mahato
I want to have a sixth autumn
I want to have a sixth autumn
Bindesh kumar jha
बनना है तो, किसी के ज़िन्दगी का “हिस्सा” बनिए, “क़िस्सा” नही
बनना है तो, किसी के ज़िन्दगी का “हिस्सा” बनिए, “क़िस्सा” नही
Anand Kumar
वैनिटी बैग
वैनिटी बैग
Awadhesh Singh
ढ़ूंढ़ रहे जग में कमी
ढ़ूंढ़ रहे जग में कमी
लक्ष्मी सिंह
संवाद
संवाद
surenderpal vaidya
मुक्तक
मुक्तक
sushil sarna
युग परिवर्तन
युग परिवर्तन
आनन्द मिश्र
"अबला" नारी
Vivek saswat Shukla
बंदूक से अत्यंत ज़्यादा विचार घातक होते हैं,
बंदूक से अत्यंत ज़्यादा विचार घातक होते हैं,
शेखर सिंह
जीवन
जीवन
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
एक कोर्ट में देखा मैंने बड़ी हुई थी भीड़,
एक कोर्ट में देखा मैंने बड़ी हुई थी भीड़,
AJAY AMITABH SUMAN
..
..
*प्रणय*
प्रीत ऐसी जुड़ी की
प्रीत ऐसी जुड़ी की
Seema gupta,Alwar
*माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप - शैलपुत्री*
*माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप - शैलपुत्री*
Shashi kala vyas
मैं शब्दों का जुगाड़ हूं
मैं शब्दों का जुगाड़ हूं
भरत कुमार सोलंकी
हिंदी दोहे- पंडित
हिंदी दोहे- पंडित
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ज्वलंत संवेदनाओं से सींची धरातल, नवकोपलों को अस्वीकारती है।
ज्वलंत संवेदनाओं से सींची धरातल, नवकोपलों को अस्वीकारती है।
Manisha Manjari
Loading...