वो यहीं कहीं पर है
दिसम्बर की सर्द रात में
दिखी एक लड़की ठिठुरती हुई
खुद में सिमटने की कोशिश
और उसका जर्द चेहरा
ढँक रहा था उसकी मासूमियत को
डर के बावजूद खुद को निडर दिखाने की कोशिश
उसे और भी मासूम बना रही थी
उसके चेहरे का नूर यूँ था कि जैसे
चाँद जमीं पर उतर आया हो
उसका वो चेहरा आज भी छाया है
मेरे जेहन पर
किन्तु अफसोस! वो दुबारा नहीं दिखी
किन्तु जब भी आता है ये दिसम्बर
ऐसा लगता है
जैसे वो यहीं कहीं पर है
मेरी कल्पना में या फिर मेरी रूह में