वो मेरी दोस्त
वो दोस्त मेरी
मुझे औरो से कुछ अलग सी लगती है
मैं उससे कैसे कहूँ
वो मुझे मेरे जिस्म में
रूह जैसी लगती है
उसके जन्मदिन पर दुआएं दूँ या ना दूँ
वो मुझे कहाँ
मुझसे जुदा सी लगती है
वो मुझे मंदिर का भगवान
मस्जिद का ख़ुदा सी लगती है
वो मुझे मेरे कलम की
स्याही जैसी लगती है
मेरे मंजिल की आसान
डगर सी लगती है
मैं उसे जुगुनू क्यो भेंट करूँ
वो तो मुझे
सितारों के आसमान सी लगती है
वो दोस्त मेरी रहे हमेशा
हाथ उठकर उसके जन्मदिन पर
ये दुआ करता है–अभिषेक राजहंस