वो मृग-मरीचिका
जब भी याद आये मेरा
तो दुःख में भी मुस्कराते
याद कर लेना,
मैं हाज़िर हो जाऊंगा !
मैं इस खामोशी के बाद
स्कूल आ गयी,
घटना किसी को बतायी नहीं
वैसे कौन विश्वास करते
किन्तु उसी दिन से प्रयास करती हूँ,
बच्चों को यह बताने-पढ़ाने
कि भाग्य या अलादीन-चिराग
‘मृग-मरीचिका’ है,
‘पारस पत्थर’ और कुछ नहीं,
अपना खलिहान है
और धरती उतना अवश्य देती है
कि हम भूखे नहीं रहे ।