वो मुलाकात भी मुलाकात क्या थी
वो मुलाकात भी मुलाकात क्या थी
दिल में जब उसके जगह ही ना थी
वफ़ा की बात भी क्या करते थे
अब वो गमज़दा भी ना थी
गिरियां हो कर पुकारते रहे उनको
कल तक नम आँखों में अश्रु की जगह ना थी
गिरियां= रोते हुए, चीखते हुए
किनारा में तलाशता रहा उम्र भर
किनारों में अब जगह भी ना थी
कदम बढ़ते रहे मंज़िल की और
अब गुमशुदा मंजिल भी ना थी
दर्द कागज़ पर सजाते भी कैसे
जब कलम में स्याह ही ना थी
ज़िंदा थे मर कर भी जाते कहाँ
जब कब्र में जगह ही ना थी
कबूल था उनका रुस्वा हो जाना
कर्ज में थे, उनके माफ़ी ही ना थी
जब खंज़र था हाथों में रखा हुआ
कांटे भरे गुलाब की जरूरत ना थी
भूपेंद्र रावत
11।09।2017