वो भी तो ऐसे ही है
पूछते हैं किसी के हाल वो,
जब आ जाये याद उनको,
वरना रहते हैं मग्न वो,
ईश्वर की भक्ति में,
अपने स्पीकर की आवाज तेज करके,
उन्हें भी तो चलानी है,
अपनी गृहस्थी और जिंदगी की गाड़ी,
इसलिए करते हैं वो भी जुगाड़,
इधर उधर से रुपयों का,
जोड़तोड़ करके,
रखते हैं बड़ो को खुश,
अगर आज वो मुझको बुला रहे हैं,
तो उनको मुझसे जरूर कोई लाभ होगा,
जरूर उनके घर कोई उत्सव होगा,
अर्थव्यवस्था के इस नवयुग में,
कौन चाहेगा रिश्तों के फन्दों में फंसना,
चाहेगा हर कोई पिंजरों को तोड़कर,
आजाद होकर उन्मुक्त आकाश में उड़ना,
और मैं भी यही चाहता हूँ,
उनके जैसा महल और खुशियां,
क्या जरूरी है धार्मिक होना,
और फिर ईमानदारी से कौन बना है,
यहाँ अमीर और नामवर इंसान,
वो भी तो ऐसे ही है,
जो आज नामवर और धनवान है।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)