वो भी क्या दिन थे
वो भी क्या दिन थे
किस्मत मेरी जब मुझे संवार गई,
ज़हन्नुम से जन्नत में उतार गई।
फैला ज़हर रोम- रोम में पूरे,
हुस्न की मक्खी जब डंक मार गई।।
जब हुस्न ने दिल बहलाया, वो भी क्या दिन थे।
अंग- अंग फूले न समाया, वो भी क्या दिन थे।।
दिल मेरा कोमल कली ने छुआ था,
ज़ालिम पीठ में घोंप गया सुआ था।
उस वक्त हुई जलन ज़माने को,
बेरहमी से जब मेरा कत्ल हुआ था।।
परवाने ने खुद को जलाया, वो भी क्या दिन थे।
अंग- अंग फूले न समाया, वो भी क्या दिन थे।।
रुह में सिर्फ वो हर पल समाई,
न जान पाई दिल की गहराई।
यारो कसम से उस जिन्दगी ने,
जाँ फिदा करने की कसमें खाई।
दिल का चमन महकाया, वो भी क्या दिन थे।
अंग- अंग फूले न समाया, वो भी क्या दिन थे।।
बेपनाह मुझसे प्यार कर गई,
चुपके- चुपके वो वार कर गई।
दिल में ‘भारती’ उसे क्या रखा,
दिल में ही वो दरार कर गई।।
जिन्दगी ने सबक सिखाया, वो भी क्या दिन थे।
अंग- अंग फूले न समाया, वो भी क्या दिन थे।।
–सुशील भारती, नित्थर, कुल्लू (हि.प्र.)
मो. 9816870016