वो भी क्या दिन थे क्या रातें थीं।
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वो भी क्या दिन थे क्या रातें थीं।
हरपल बस मुहब्बत की बातें थीं।।
रोनें को न भूली बिसरी यादें थीं।
बस तुमसे हर रोज मुलाकातें थीं।।
दिल में तुम ओठों पे मुस्कुराहटें थीं।
इक दूजे को पानें की बस दुआएं थीं।।
नींदें कहां आंखों में रतजगे की रातें थीं।
देखने को बस चांद तारों की बारातें थी।।
उजला दिन और शुरमई शामें थीं।
सफरे जिंदगी आसान था आसान राहें थीं।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ