वो भीतर बाहर रहता है
वो द्वार बंद हैं उसके लिए, जो “मैं” को ढोता रहता है।
“मैं” छोड़ सदा तू उसके लिए, वो भीतर बाहर रहता है।।
जब खंड चेतना चित्त चढी, घटा आकाश प्रतिबिम्ब बढा,
परमात्मा चेतन मन मंदिर, प्रभु अंश आत्मा रहता है।
मंदिर मस्जिद गुरूद्वारे दर, मूर्ती स्थापित गिरजाघर।
परमपिता बनाया जोड़-तोड़, जो माया अदेखा रहता है।
जग मंदिर सारी दुनिया द्वार, जब जीव बसा उस उर अंदर।
मानव निर्मित मर्मित मूर्ती, बाहर निहारी प्राकृतिक।
मत तोड़ो मंदिर मस्जिद दर, परमात्मा कहाँ नहीं रहता है।
संप्रादायक संगठन शक्ति सजा, बना लिया अपना आँगन।
प्रभु पारायण पथ पावन, आनंद “आंसू” आत्मा आनंद।
ये “मैं” मिटा बस तू ही तू, जो ज्योति जगमग जलता है।