वो बेटी है ना!
वो बेटी है ना!
उसे पापा की शर्ट, माँ की साड़ी भाती है।
सारे घर को रौशन करके स्वर्ग बनाती है।
हंसकर हर जिम्मेदारी चुपचाप उठाती है।
भाई का हाथ बहन की राखी बन जाती है।
वो बेटी है ना! सारे फर्ज निभाती है।
बड़ी – बड़ी मुसीबतों से निडर लड़ जाती है।
कभी छोटी सी बात पर ढ़ेरो आसूँ बहाती है।
कड़ी धूप में भी चहकती – खिलखिलाती है।
कभी ठन्डी छाँव में बेहद मुर्झा सी जाती है।
वो बेटी है ना! सारे फर्ज निभाती है।
अपनी हँसी से वो सारा आँगन महकाती है।
उसकी बोली कानों को सरगम सी भाती है।
ये जहाँ डोल जाए जब वो चुप हो जाती है।
उस जैसी अभिनयकला किसे और आती है।
वो बेटी है ना! सारे फर्ज निभाती है।
जिस समाज को वो नई सी राह दिखाती है।
उसी समाज के जाने कितने ताने खाती है।
उसकी आशाओं को खुद वो पंख लगाती है।
वो अपनी नारी-शक्ति का लोहा मनवाती है।
न करपाते शूरवीर जो हंसकर करजाती है।
वो बेटी है ना! सारे फर्ज निभाती है।
-शशि “मंजुलाहृदय”