वो बारह दोहे ।
बारह दोहे
तिल तिल गर्मी बढ़ रही , पल पल लगे थकान ।।
उमस सताये रात दिन , ,,,आफ़त मे है जान ।।
भौतिकता से है सजी , जीवन एक दुकान ।।
लोभ मोह की छूट से,,,, आफ़त मे है जान ।।
भौतिकता मे भक्तिमय, भक्तों का नुकसान ।
भक्ति करे संग्राम या,,,,,आफ़त मे है जान ।।
दानशीलता से मिले, ,,,,सब लोगों का प्यार ।
राम ख़ुशी मन की बढ़े ,, सदा करो उपकार ।।
सारे बगुले चल रहे , राजहंस की चाल ।।
तोते सभी निराश हैं ,,उल्लू मालामाल ।।
बात कही क्या आपने, सुंदर सरल सटीक ।
अपनी गलती आपसे,, कर लेना ही ठीक ।।
शीतलता सहमी बढ़े ,,,देख सूर्य का ताप ।
धूप और गर्मी बढ़ी ,,,,देने को सन्ताप ।।
गाँव नगर को छोड़कर ,शीतल मन्द समीर ।
नीरवता चुगने लगा ,,,,,बैठ नदी के तीर ।।
जलधि मिलन की प्यास मे ,बदल गया वर्ताव ।
नदियां दूबर हो गयीं ,,,,,,धीमा पड़ा बहाव ।।
धन कन्या गोदान से, बढ़े मान सम्मान ।
दानो मे सबसे बड़ा , रक्तदान का दान ।
सफ़ल सार्थक प्रेम पर,,,,,, दोहे रचे सुजान ।
और भक्ति पर रच दिये, अतुलनीय श्रीमान ।।
प्रिय मिलन की बेक़सी , घूँघट पड़ी निकाल ।
देख नयन की टकटकी,,,,, हुई शर्म से लाल ।।
राम केश मिश्र