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27 Aug 2017 · 1 min read

वो बारह दोहे ।

बारह दोहे

तिल तिल गर्मी बढ़ रही , पल पल लगे थकान ।।
उमस सताये रात दिन , ,,,आफ़त मे है जान ।।

भौतिकता से है सजी , जीवन एक दुकान ।।
लोभ मोह की छूट से,,,, आफ़त मे है जान ।।

भौतिकता मे भक्तिमय, भक्तों का नुकसान ।
भक्ति करे संग्राम या,,,,,आफ़त मे है जान ।।

दानशीलता से मिले, ,,,,सब लोगों का प्यार ।
राम ख़ुशी मन की बढ़े ,, सदा करो उपकार ।।

सारे बगुले चल रहे , राजहंस की चाल ।।
तोते सभी निराश हैं ,,उल्लू मालामाल ।।

बात कही क्या आपने, सुंदर सरल सटीक ।
अपनी गलती आपसे,, कर लेना ही ठीक ।।

शीतलता सहमी बढ़े ,,,देख सूर्य का ताप ।
धूप और गर्मी बढ़ी ,,,,देने को सन्ताप ।।

गाँव नगर को छोड़कर ,शीतल मन्द समीर ।
नीरवता चुगने लगा ,,,,,बैठ नदी के तीर ।।

जलधि मिलन की प्यास मे ,बदल गया वर्ताव ।
नदियां दूबर हो गयीं ,,,,,,धीमा पड़ा बहाव ।।

धन कन्या गोदान से, बढ़े मान सम्मान ।
दानो मे सबसे बड़ा , रक्तदान का दान ।

सफ़ल सार्थक प्रेम पर,,,,,, दोहे रचे सुजान ।
और भक्ति पर रच दिये, अतुलनीय श्रीमान ।।

प्रिय मिलन की बेक़सी , घूँघट पड़ी निकाल ।
देख नयन की टकटकी,,,,, हुई शर्म से लाल ।।

राम केश मिश्र

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