वो बहुत दिनों बाद .
किसी काम से बाहर जा रहा था …. अकस्मात वो बहुत दिनों बाद …बरसो बाद नजर आई … होना क्या हैं .. नजरो से नजर मिलते ही वह कुछ देर देखती रही और नजरे चुराकर जाने लगी ! मेने आवाज दी मेरी भी धड़कने तेज हुयी ! अजबसि बेचैनी और थोडीसी ख़ुशी ! उनका तो पता नहीं शायद वह मुझे टालने लगी ! मैंने फिर आवाज दी फिर रूककर वह बोली आरे तुम मैंने शुरू मे पहचाना नहीं ! मैं हंसकर बोला बात तो एकदम हैं सही ! खैर जाने जाने दो तुम कैसी हो ? अंकल – आंटी बड़े भैया , कच्चे – बच्चे ? तेरे दीवाने ? वह झूठ मुठ हॅसते हुए बोली . किसके बच्चे ? तू अभी तक सुधरा नहीं ! बिलकुल वही बचपना हरकते बेतुके छोड़े नहीं ? मां अक्सर बीमार रहती हैं ! पिताजी परलोक सिधारे ! बड़े भैया तबतला करके हवा हुए ! मैं लम्बी साँस लेकर बोला .. और तेरे बालबच्चे और बच्चो के पिताजी प्यारे कैसे हैं ? वह सुनते ही उनकी आँखे भर आई ! दूसरी और दूर देखकर बोली … उन्हें गुजरे दो साल हुए … मैं माँ के साथ हमारे पुराने मकान में रहते हैं ! छोटी – मोटी नौकरी करके गुजारा करते हैं ! मैंने कहा अरे रस्ते पर सारी बातें करे क्या ? चलो मस्त कॉफी हो जाये ! वह चुपचाप मेरे पीछे चलकर मेरे सामनेवाली कुर्सीपर सहमकर इधर उधर देखकर बोली … तुम कैसे हो ? तुम्हारी बीबी बच्चे ? ठीक हैं बच्चा 5 th क्लास में पढ़ रहा हैं ! और बीबी … मैं चुपचाप कॉफी का ऑर्डर देकर फोन पर मेसेज पढ़ने लगा ! उसने फिर कहा अरे मेरे सवाल का जवाब तो मुझे मिला नहीं ! तब तक कॉफी आई मैंने हड़बड़ी मे बड़ा घूंट पीना चाहा और मुंह जलने का आभास हुवा तब कुछ देर रुकर पि लिया ! उसने तुरंत बोला आराम से तुम नहीं सुधरोगे ! हम दोनों हँसते ताली बजाते देखकर लोग विचित्र भाव से देखने लगे ! मगर यह भी सच था की बरसो बाद दिलसे हसने का मौका आया था ! इंसान जब दुनियावाले क्या कहेंगे ? ऐसा सोचके जीने लगता हैं तब से वह एक संवेदनहीन यन्त्र बन जाता हैं ! बहुत देर तक स्कुल कॉलेजवाले दिन हंसी , मस्ती की बातें हुई ! बरसो बाद वह लम्हे फिर से जिन्दा हुए कुछ देर ही सही हम फिर आज़ाद पंछी हुए ! वह हड़बड़ाकर उठते हुए बोली . वो माय गॉड माँ की दवाई लेना भूल गई ! तू ना बिलकुल पागल हैं ! चलो मैं चलती हुं ! बहुत देर हुयी ! ठीक हैं मिलते हैं कहकर निकला ही था वह ऐसा कैसा जा सकता हैं तू मेरा जवाब दिए बगैर .. चलो चुपचाप बोलो कब मिलावोगे मेरी सौतन से . मजाक के मुद में वह बोली … इस बार मृ बोलती बंद हुई और मैं वर्तमान में खोया देखकर वह बोली … हाँ हाँ जरूर जरूर मिलवाऊंगा क्यों नहीं ? अच्छा चलती हूँ कहकर हाथ हिलाते वह चली गई ! कितना फर्क होता हैं ना हम लड़के – लड़कियों में … वह सबकुछ खोकर भी लड़ रही हैं अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभा रही हैं ! इतने दुःख दर्द सहकर भी खुश हैं .. कम से कम वैसा दिखाती ही क्यों न हो ! अपना घर दार सुहाग खोकर भी वह टूटने का नाम नहीं लेती ! कहाँ से जुटाती होंगी इतनी हिम्मत ? कितना फर्क हैं दोनों में ? बीबी सबकुछ होकर भी अपनी जिम्मेदारियों से भागती, आराम से निठल्लेपनसे अनजान सिर्फ झगड़ती (हक़ जताती दोनों तरफ )मैंके में मुफ्त की रोटियां तोडती ! बेशर्मी से जिए जा रही हैं ! और दूसरी सबकुछ सहकर भी लड़ रही कभी किस्मत से , कभी नियत से तो कभी अपने आप से दुनियाभरके बुराइया से , महंगाई से …. कितना अच्छा होता तू जिंदगी से यूँही नहीं चली जाती तो … किस्मत का खेल देखो कितने दिन बाद वह मिली … पुराने यादें ताजा हुयी ! जिसको चाहा वह मिली नहीं ! जो मिली वह रुकी नहीं ! अपने बिछड़ने का गम होता हैं ! तो कोई अपने होकर भी पराये हो जाते हैं ! तो कुछ दूर रहकर भी अपने बिलकुल पास रहते हैं साथ रहते … कुछ रिश्ते बस नाम के होते हैं ! तो कुछ रिश्ते खून से बढ़कर भी … दिल से शुरू होनेवाले रस्ते आखरी साँस तक चलते हैं … तो कुछ रिश्ते होने न होने से कुछ फर्क नहीं पड़ता ! क्यों की दो जान होकर भी एक दूसरे मे घुलमिल जाते हैं , जैसे दूध में शकर पिघलती हैं ! तो कुछ रिश्ते स्वार्थ भाव् से लबालब कढ़ी पत्ते जैसे होते हैं ! कम निकलने के बाद अनजाने से सुलूक करते हैं ! तब जा के ज्यादा तक़लिब होती ! जो दिल से सोचते हैं सवेंदनशील होते हैं ! दिल का रिश्ता . खून के रिश्ते से बढ़कर होता हैं ! वह अंतर आत्मा की आवाज होती हैं ! फोन की बेल से मैं होश में आया जो उसके खयालो में अब तक खोया हुवा था …..मिलके बिछड़े हुए हम भी कहा आ के मिले ….