— वो बचपन की याद —
जैसे जैसे गुजर रही है
उम्र
वैसे वैसे याद आता है
वो बीता हुआ पल
न थी कोई फ़िक्र
न था कोई गम
वो बचपन का बीता
हुआ हमारा कल
माँ की पिटाई
बहन भाई की लड़ाई
स्कूल से आते ही
दौड़ता था मन
चलूँ दोस्तों के संग
खेलूं गिल्ली डंडा
और फुट जाता था
किसी न किसी का सर
स्कूल से शिकायत
दोस्तों शिकायत
तंग आ जाती थी माँ
और कह देती थी
तू मानेगा नहीं तो
कल से तेरा खाना पीना बंद
इक डर सा रहता था
न जाने माँ अब क्या दिखाएगी
रंग ,
दौड़ के घबराते हुए
उस की गोदी में रख देते थे सर
पुचकारती थी.
प्रेम दिखाती थी
और आँखों से नीर भी
संग ही बहाती थी
अब वो दुलार कहाँ
अब वो समा कहाँ
बीत गया वो सब पल
अब जीवन की सांझ में
दिल भर आता है
पुकारता है
अकेले में
माँ से मिलने को ये मन
खुद आंसू नहीं बहा सकते
बच्चों के आगे खुद को
संभाल के रखने का रहता है मन
याद तो याद ही होती है
जिंदगी अब लौट के
कहाँ वो बचपन को
वापिस लेकर आती है
अपने बच्चों को देख कर
याद कर लेता हूँ
अपना गुजरा हुआ
बचपन का कल !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ