वो फूल सी खिलने लगती है
जब मुझसे से मिलने लगती है
वह फूल सी खिलने लगती है
मेरी आँखों में अपना चेहरा देखके
वह शरमा के हंसने लगती है
चरागों का हौंसला देखकर
हवा भी दब के चलने लगती है
तुम जाने की बात जो करते हो
मेरी जान निकलने लगती है
पंछी लौट आते हैं घरों की तरफ़
जब यह शाम ढलने लगती है
तेरे मासूम लहज़े की कशिश से
मेरी ज़िद पिघलने लगती है
जब कोई दिल में बस जाता है ‘अर्श’
सूरत ख़्वाबों में टहलने लगती है