वो पिता है साहब , वो आंसू पीके रोता है।
मैं बहुत अभिभूत हूं, मैं इन पंक्तियों को आप तक पहुंचा रहा हूं।।
पूरी बरसात निकाल दी, बिना छतरी के उसने,
सौ रूपए बचाकर बेटे को चप्पल खरीद लाता है।
और पूरे बीस रूपए बचाता है रिक्शा न लेकर,
बेटी को चूड़ियां दिलाऊंगा, ये सोचकर पैदल घर आता है।
और पत्नी कुछ नहीं मांगती कभी, ये विचार सताता है,
और शर्ट के लिए बचाए पैसे से, साड़ी खरीद लाता है।
इस सबके बाद भी, कैसे दिखेगी आंखों में नमी उसकी,
वो पिता है साहब, वो आंसू पीके रोता है।।
वो पिता है साहब, वो आंसू पीके रोता है।।
अभिषेक सोनी
(एम०एससी०, बी०एड०)
ललितपर, उत्तर–प्रदेश