वो पिता देव तुल्य है
पिता है तो घोसला है
वरन् एक ढकोसला है
जिंदगी है गर एक मेला
मेले का हर सामान मेरा
है गर , जीवन एक खेला
शेष रहता नहीं, कोई झमेला.
हर मुश्किल को जिसने झेला,
भले पड़ गया हो, वो अकेला.
हार नहीं जो कभी मानता,
सब जग उसकी, महिमा जानता.
नहीं है उसकी जग में कोई मान्यता
सूत्रधार है वो, उस माला के.
गले में जो हर माता,मनके, पहनती.
सौभाग्य वती ऊर्जावान जो रखती.
भूख प्यास का जिसे नहीं पता.
घर के हर शख्स को वो पालता.
वो पिता देव तुल्य है.
महेन्द्र सिंह हंस
943/सेक्टर 4
रेवाड़ी (हरियाणा)
123401