वो पगली
कदम ज़मी पर आसमान के
ख़्वाब निराले देखे वो पगली ,,,,
मन की दुनिया में उसने
सुन्दर सा एक शहर बनाया
उसी शहर के एक शज़र पर
मझधार के झूले ,झूले वो पगली ,
कभी एक छोटी चिड़िया बन
बादल के संग उड़ा वो करती
कभी चोंच में इन्द्रधनुष ले
सुन्दर धरती रंगती वो पगली ,
कदम ज़मी पर आसमान के
ख्वाब निराले देखे वो पगली ,,,,
कभी नर्म फूलों सी महके
बने हवा देखे बह-बह के
कभी हरे भरे मैदानों – सा
विस्तार लिए बिछ जाए पगली ,
गहराई से ज्यादा गहरी
चमक से भी ज्यादा चमकीली
प्यार से भी ज्यादा प्यारी हर
लड़की में छिपी है वो पगली ,
कदम ज़मी पर आसमान के
ख्वाब निराले देखे वो पगली ,,,,
सितारों से होड़ा होडी में
रोशन हर दम उम्मीदे करती
जब सुनती अन्याय की ख़बरें
ड़र से भी ज्यादा वो ड़रती ,
कभी निर्मम तूफानों की
गिरफ्त में नहीं आ पाए वो
हो एक बार जो रोशन
बाती-सी ना बुझ पाए पगली ,
कदम ज़मी पर आसमान के
ख्वाब निराले देखे वो पगली ,,,,
– क्षमा उर्मिला