वो दिन
वो दिन
वो भी क्या ज़िंदगी थी छोटी सी उम्र थी
ना कोई समझ थी हस्ते ही रहते थे
अपनी मस्ती में ही रहते थे
फिर एक दिन अम्मी ने हमे बस्ता थमा दिया और जिंदगी मैं नया ही किस्सा चला दिया
हम रोज रोते हुए जाते थे और हस्ते हुए आते थे
क्या हो रहा कुछ पता ना था पढ़ने मे बिलकुल भी मज़ा ना था
स्कूल के नाम से हम रोने लगते थे
किताबों को देखते ही हम सोने लगते थे।
कुछ साल यूंही सिलसिला चला हम थोड़ा बहुत पढ़ते गए और आगे बढ़ते गए।
कई हम उम्र वालो से मुलाकात होगी देखते ही देखते नई दोस्ती की शुरुवात होगी।
फिर उनके साथ ही हम खाना खाया करते थे
ज़िंदगी का महत्वपूर्ण वक्त उनके साथ ही बिताया करते थे। हम सब एक दूसरे की जिंदगी का हिस्सा बन गए थे, हम सब दोस्ती का नया किसा बन गए थे। ज़िंदगी तो हम स्कूल में जीया करते थे,हर शरारत हम साथ ही किया करते थे, स्कूल में गुरु जी को बहुत परेशान किया करते थे जिंदगी का हम पूरा मजा लिया करते थे।
ज़िंदगी में अब तो परेशानी रह गई है
बस अब स्कूल की यादें सुहानी रह गई है।