वो तो मां है जो मुझे दूसरों से नौ महीने ज्यादा जानती है
न जाने किन-किन तकलीफों से गुजर जाया करती है,
नौ महीने दर्द सहकर मां होने का फर्ज़ अदा करती है!!
नादां हैं हम जो समझ नहीं पाते हैं क़ीमतें उसकी,
अन-गिनत दुआएं देती अपनी ज़िंदगी नवाज़ा करती है!!
मां तेरी गोद में ही मिलता हैं सुकून-ए-यक़ीन मुझे,
अपने आँचल में सपनों की दुनिया बसाया करती है!!
चूम लूं उसके वो हाथ, मेरे माथे पे यूं फेरा करती है,
प्यार भरी लोरी सुनाते रात-रात भर जगा करती है!!
दो-दो पैसे जोड़कर अपने पल्लू से बांधा करती है,
आंचल में छिपा बेश-कीमती दुलार लुटाया करती है!!
दीवार बनके ख़ुद ही खड़ी रहती है मुश्किल की घड़ी में,
वो तो मां है, सच में भगवान से बड़ी बन जाया करती है!
कौन ये कहता है मां की ममता अब बूढ़ी हो चली है,
उसके पैर दबाके, मेरे हाथों से खुशबू आया करती है!!
बैठ अकेले उस आंगन में मेरा बचपन ढूंढा करती है,
दो कौर खिलाने की ख़ातिर पीछे भागा जाया करती है!!
वो तो मां है जो मुझे दूसरों से नौ महीने ज्यादा जानती है,
मुद्दतों बाद मिलते ही आहट से पहचान जाया करती है!!
कहां-कहां ढूंढू तुझे, तू बस मेरे दिल में समाया करती है,
वो घर वो आंगन तेरे अहसास से महक जाया करती है!!
तेरे रहने से बढ़ जाती है रौनक़ें मेरे घर मेरे आंगन की,
तेरी मुस्कुराहट से मुरझी कली खिल जाया करती है!!
बरक़रार है उनकी दुआओं से इन होंठों पर मुस्कानें,
उनकी देख-भाल में घर के चराग़ जल जाया करती है!!
बरकतें बेशुमार आती रहीं, ताउम्र झोली भरती रहीं,
लेके बलाएं मेरी मां हर रोज़ नज़र जो उतारा करती है!!
©️🖊️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)