वो तुम
समझ नहीं आता,
वो चिकनी माटी सी तुम
या माटी तुम सी है
वो ओश वाली दिन की धूप सी तुम
या धूप तुम सी है
वो पतझड़ की बहार सी तुम
या बहार तुम सी है
और कितना उलझेगा कोई तुम्हें जानकर
शायद हैरत ही तुम या हैरत ही तुम सी है
समझ नहीं आता,
वो चिकनी माटी सी तुम
या माटी तुम सी है
वो ओश वाली दिन की धूप सी तुम
या धूप तुम सी है
वो पतझड़ की बहार सी तुम
या बहार तुम सी है
और कितना उलझेगा कोई तुम्हें जानकर
शायद हैरत ही तुम या हैरत ही तुम सी है