वो तुम “हो”
चाँद सी मोहक अदाएं हैं जिसकी…
वो तुम “हो”
पवित्र चन्दन सा आकर्षण
कुमकुम सी कोमलता है जिसकी…
वो तुम हो
दीप सी दमकती आभा है जिसकी…
वो तुम हो
सलोनी सी सूरत
तुलसी सी पवित्रता है जिसकी…
वो तुम हो
हिम सी शीतलता है तुझमे
नीर सी चंचलता है तुझमे
मधुरम सी स्वर वाली
वो तुम हो
कनक सा कलेवर
नीलम सा निखार
मधु सी मिठास वाली
वो तुम हो
वो तुम हो
मन के अन्तः करण में जब प्यार को संजोया,याद आ गई तुम प्रिय और वो
रात्रि-
मेरे जीवन के प्रथम अध्याय में…
“शलिनी” देह सुगंध में…
प्रीत की स्मृति में…
वक्ष के प्रशाध्य में…
श्रीस्व्खलित मार्ग में…
मेघों के हलके प्रवाह में…
हम एक हो रहे थे…दो शरीरों की सुगंध को
समेटे सूर्य की अंतिम किरण से पहली किरण
तक हमने एक सुअध्याय लिखा था…
उस अध्याय का नाम “सुनिल+रूचिका”
“सुरूचिका”
सुनील पुष्करणा