वो जो रह गई उन बातों का क्या
वो जो रह गई उन बातों का क्या ?
कहे कुछ और कुछ ख्यालों का क्या ?
वजह वो न थी जो बस कह गये
जो अभी भी है उन वजहों का क्या?
दूर है एहसास और पास भी
कभी-कभी मगर इन यादों का क्या?
ढूढ़ेगे ज़रूर अपनी भी ग़लतियाँ
गलत-सही फरेब इंसानों का क्या?
एक नहीं कई जख्म हैं बदन पे
चलो ढक लिया, पर अब सूरतों का क्या?
कहते है कद बड़ा है शागिर्द का
फिर खुदा के आगे जमानों का क्या?
बदला वक्त तो बदले हम भी ‘मनी’
पर बे-तब्दील चाहतों का क्या?
– शिवम राव मणि