वो जो मेरठ दो सौ घर जल गए पता तो करो लाख के थे क्या ?
कई साल हुए इस बात को पर भूल नही पाती। एक बार कापड़ा धोने के दरमियान कपड़े के साथ सै का नोट भी धुल गया था मुझ से,जिसे इस्त्री (प्रेस) से सुखाने में अपनी ही असावधानी के कारण जला बैठी, जिसका दुख कितना होगा आप इस से आसानी से समझ सकते हैं की वो जला हुआ नोट आज भी मेरे किताब के किसी पन्ने में दुबका हुआ बैठा है। वैसे ही एक बार कुछ महीने के लिए मायके गई तो पीछे से मेरे किताबों में दीमक लग गया। आने पर बड़ी मस्कत से रोते हुए जैसे-तैसे किताबों को दीमक के चंगुल से निकालने में कामयाब तो हुई पर किताबों की हालत का आप खुद अंदाजा लगाएं। पढ़ने लायक़ तो रहा नहीं उसकी जगह उसी की दूसरी प्रति ने ले ली,परन्तु उसे फेक नहीं पाई आज तक उसी अवस्था में मेरे पास महफूज़ है। आप सोच रहे होंगे पागल हो गई है क्या ? हाँ हो गई हूँ पागल। जब अपने चीजों को नस्ट होते देख, जो अपनी ही गलतियों का नतीजा हो,उस से इतनी दुखी हो सकती हूँ तो उन दो सै घरों कों धूं-धूं जलता देख पागल कैसे न होऊं ?
मेरठ के भूसा मंडी हाउस में 6 मार्च को एक भवन निर्माण पर मकान मालिक और प्रशासन के बीच हुए झड़प की ताप बस्ती के लगभग 200 घरों को लपेट ले गई। बताया जाता है कि प्रसासन ने ही आग जनि की सभी के सभी मुस्लिम लोगों का घर था। आप लोग खुद सोचें, ‘घर’ जिस में लोग अपनी जिंदगी की जमा पूजीं के साथ अपने सपने,अरमान और न जाने क्या-क्या लगा देते हैं। उसे कुछ लोग बस अपनी अना के संतुष्टि के लिए आग में झोक देते हैं। किस तरह की हैवानियत है ये ?
क्या इस देश में कानून व्वस्था की बातें किताबों के पन्नों की शोभा बनने मात्र के लिए है, लोगों के जीवन में इसका कोई उपयोग नहीं ?
या मुस्लिम होना ही काफ़ी है शोषितों कि लाईन में खड़े होने के लिए। अजीब दोगलापंथी है।
अभी कुछ दिनों पहले ही मैं ने up के अख़बारों के पहला और दूसरा पन्ना योगी जी महराज के गुणगान से भरा पाया था। जिस का हेड लाईन ही इतना शानदार कि पूछिए ही मत ‘नये भारत का नया उत्तर प्रदेश’ जिसे पढ़ कर एक बार को तो ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान का सबसे ख़ुशहाल प्रदेशों में up सबसे अग्रगण्य है। क्या हिन्दू क्या मुसलमान क्या बहुजन सभी राम राज्य में जी रहें हैं। सभी को वो सब मुहैया करा दिया गया है, तत्कालीन सरकार से जिस कि इक्षा और ज़रूरत हर इंसान को होती है। पर दीखता क्यों नहीं ?
दीखता तो बस इतना है कि ऐसे लोगों के हाँथ में सरकार है जिन्हें सबसे ज़्यादा खुन्नस अल्पसंख्यकों से ही है। हर हाल में उनकी रीढ़ की हड्डी तोड़ी जाय,डंडे पे उनकी इंसानी हक़ूक़ को टांग दिया जाय।लानत भेजती हूँ ऐसे लोगों पर जो वो कर रहे हैं जिसे अंगेजो ने शुरू तो किया पर अधूरा रह गया अब उस ‘अंग्रेजों’ से मांफी मांगने वाले लोग हमारी एकता की कमर तोड़ने में लगे हैं। बेशर्म और निरंकुश सरकार।
एक बार धर्म का चश्मा हटा कर इंसानों जैसे सोच कर देखिए, वे लोग जिनके घरों को दिन दहाड़े भट्ठी में तब्दील कर दिया गया,उन घरों में बच्चे,औरतें,बेटियाँ,बुज़ुर्ग माँ-बाप कौन नहीं होगा सब के सब किस तरह अपनी जान बचाने कि कोशिस में अपने सपनों के सुंदर आशियाने को जलता हुआ छोड़ कर भागे होंगे।कि कैसे एक दूसरे को ढूंढने की कोशिश में हताशा में इधर -उधर भागते हुए अपनी जान और अपनों की जान कि सलामती की दुआ कर रहे होंगे। कुछ सोच नहीं पा रही कि किस अज़ाब का सामना किया होगा उन लोगों ने।
मुझे जैसी जानकारी मिली है उस से ये भी पता चलता है एक घर में एक बिकलांग लड़की भी बंद थी,उसे जैसे-तैसे बचाया गया। कितनी ही ऐसी औरतें थीं, जिन्होंने रुपया-रुपया जोड़ कर अपनी बेटियों का दहेज़ इकठा की थी सभी के सपने अग्नि देव को भोग में चढ़ा दिए गए।
हाय जब से ये खबर सुनी है मेरी रातों की नींद दिन का चैन सब कहीं खो गया है। इतनी बेचैनी की शब्दों में बयान नहीं कर सकती।
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…सिद्धार्थ …