वो जो मुझको रुलाए बैठा है
ग़ज़ल
वो जो मुझको रुलाए बैठा है
दिल भी उसपे ही आए बैठा है
मेरी जाँ तक निकलने को आई
और वो मुस्कुराए बैठा है
जिसको हमराज़ समझा था मैंने
वो ही सबको बताए बैठा है
दर्द किसको बयाँ करूँ अपना
शख्स जब हर सताए बैठा है
घर मेरा जल रहा तो जलने दो
कोई अपना जलाये बैठा है
काजू निषाद
8451967872
राजधानी गोरखपुर उत्तरप्रदेश