वो ज़िद्दी था बहुत,
वो ज़िद्दी था बहुत,
मगर मेरी इल्तिज़ा पे मान जाता था
मेरी हर बात पे वो इंकार करता
मगर ज़िद पे वो हार जाता था
वो मुझ को हमेशा अजनबी ही कहता
मगर दोस्तों की तरह ही रखता था
मेरी हंसी उसे बुरी लगती थी
मगर वो रोता भी नहीं देख सकता था
जिस के इंतजार में खुद को भूला दिया
वो हमेशा मुझे पागल कहा करता था