वो जलजला बुलाएगा तो मशवरा दिया करूं!!
एक ग़ज़ल बहुत दिनों बाद आपको निवेदित करता हूं।
1212 1212 1212 1212
नया है दर्द इश्क़ में नहीं तो क्या कहा करूं?
जो दर्द आप दीजिए खुदा करे हँसा करूं!
उमंग अब रहा नहीं रही नहीं वो चाहतें
कि जिसके वास्ते निसार जान को किया करूं।
मुझे तो लग रहा यहां कि मृत्यु का शुमार हो
सुकून देव मौत हैं तो किस लिए डरा करूं?
बुझा हुआ चिराग़ हूं कि थक चुका जला जला?
बसात शक के दायरे में है नहीं तो क्या करूं!
असंख्य कृतिमान की अराधना विफल हुई
मगर मैं क्या सवाल सूर्य देव करा करूं?
अंधेर रात है कि जिंदगी में ही अंधेर है।
चकोर साथ चांद का न दे सकी तो क्या करूं?
हसीन लफ्ज़ आ सको तो आ लिखूं ग़ज़ल तुझे
हसीन लब से जिक्र जानेजान का किया करूं।
जो हादसा यहां हुआ अमर्त्य प्रेम नाम पर
वो जलजला बुलाएगा तो मशवरा दिया करूं!!
©®दीपक झा “रुद्रा”